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गर्मी में बोई जाने वाली मूंग की फसल पर दवाओं के छिड़काव को लेकर कृषि मंत्री ने जारी किए दिशा-निर्देश।

Rahul Saharan, March 16, 2025March 16, 2025

राम राम किसान साथियों जैसा की आप सभी जानते है कि भारत में मूंग की फसल का महत्व कृषि में अत्यधिक है।गर्मी की ऋतू में मूंग की खेती मुख्य रूप से नर्मदापुरम, जबलपुर तथा भोपाल संभाग में की जाती है। यह दलहन फसल हमारे भोजन का अहम हिस्सा हैं और पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत भी। लेकिन, इन फसल की पैदावार को प्रभावित करने वाले कई रोग भी हैं, जो किसान के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन सकते हैं। जिसके कारण मूंग की फसल में अत्यधिक दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है। इसके लिए हाल ही में मध्यप्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किये है।

किसान भाइयों दलहन की फसलों की अच्छी पैदावार के लिए उन्हें कीटों और रोगों से सुरक्षित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेषकर बारिश के मौसम में जब खेतों में कई दिनों तक पानी भरा रहता है, तब पौधों में बीमारियों और कीटों के हमलों का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए कृषि विभाग ने किसानों के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय सुझाए हैं

किसान साथियों मध्यप्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री जी के अनुसार इस वर्ष प्रदेश में लगभग 14.39 लाख हैक्टेयर में मूंग की फसल की बुवाई करने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके द्धारा लगभग 20.29 लाख मीट्रिक टन उत्पादन होने की संभावना है। तथा इसके साथ ही लगभग 1410 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की औसत उत्पादकता है।

खरीफ सीजन के दौरान किसानों ने दालों की फसलों की बंपर बुवाई की है, और दाल उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिए गए प्रोत्साहन का असर रकबे में भारी वृद्धि के रूप में देखा गया है। हालांकि, इस बार की बंपर बारिश के चलते मूंग और उड़द की फसलों में ‘पीला चितकबरी’ या ‘मोजेक रोग’ और ‘सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग’ जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। विशेषकर उन खेतों में जहाँ पानी अधिक समय तक भरा रहा है, इन रोगों और कीटों के हमलों का जोखिम ज्यादा है।

मूंग में पीला चितकबरी या मोजेक रोग का बढ़ता खतरा

सरकार के कृषि विभाग द्वारा जारी की गई सलाह के अनुसार, मूंग की फसल में वर्तमान के मौसम के अनुसार पीला चितकबरी रोग, जिसे पीला चितवर्ण या मोजेक रोग भी कहा जाता है, का खतरा बढ़ सकता है। रोग के प्रभाव के कारण पौधों की पत्तियों पर पीले-सुनहरे धब्बे बन जाते हैं। अधिक रोग के फैलाव के कारण पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है। यह रोग सफेद मक्खियों के माध्यम से फैलता है, जो पौधों पर इस रोग को ट्रांसमिट करती हैं और धीरे-धीरे पूरी फसल को प्रभावित करती हैं। इससे पत्तियों की चिकनाई खत्म हो जाती है और वे सिकुड़ने लगती हैं।

रोग से बचाव उपाय-

बीज की बुवाई का समय : पीला चितकबरी या मोजेक रोग से बचने के लिए बीज की बुवाई जुलाई के पहले हफ्ते तक कतारों में करनी चाहिए।

रोगग्रस्त पौधों का निपटान: प्रारंभिक अवस्था में ही पीला चितकबरी या मोजेक रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।

फसल सुरक्षा उपाय : पीला मोजेक रोग से फसल को बचाने के लिए, रोगग्रस्त पौधों को खेत से दूर फेंकना चाहिए या जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

डायमीथोएट 30 EC का उपयोग : 1 लीटर डायमीथोएट 30 EC कीटनाशक को लगभग 600 लीटर पानी में घोलकर खेत में छिड़काव करें।

ऑक्सिडिमेटान- मिथाइल 25% EC का उपयोग : 1 लीटर ऑक्सिडिमेटान- मिथाइल 25% EC कीटनाशक को 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

ट्रायजोफॉ-40 ईसी का उपयोग : 2 मिली ट्रायजोफॉ-40 ईसी को 1 लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

थायोमेथोक्साम-25 डब्लूजी का उपयोग : 2 ग्राम थायोमेथोक्साम-25 डब्लूजी को 1 लीटर पानी में मिलाकर 3 बार छिड़काव करें।

किसान साथियों मूंग की फसल हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इसकी खेती में रोगों का प्रबंधन न केवल फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि किसान की आय को भी प्रभावित कर सकता है। ऊपर दिए गए उपायों और सावधानियों को अपनाने के अलावा कृषि विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले।

कृषि मंत्री द्धारा जारी दिशा-निर्देश-

किसान साथियों मूंग की फसल में रोगो का अत्यधिक खतरा होने के कारण किसानों को इसमें बहुत अधिक दवाओं का छिड़काव करने की आवश्यकता पड़ती है। और यदि किसान भाई दवाओं का छिड़काव नहीं करते है तो रोगाणु मूंग की फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों को हानि पहुंचाते है। हाली ही में मध्यप्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ने मुंग की फसल में दवाओं के छिड़काव को लेकर के कुछ दिशा-निर्देश जारी किये है।

किसान साथियों मध्यप्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ने किसानों से ये अपील की है की गर्मी में बोई जाने वाली मूंग की फसल में किसान भाई खरपतवार नाशको तथा कीटनाशकों का उपयोग बहुत ही कम मात्रा में करें यानी की लगभग ना के बराबर ही करें। क्योकि अधिक खरपतवारनाशकों और कीटनाशकों का उपयोग करने से इन दवाओं का कुछ अंश मूंग के अंदर शेष रह जाता है। जो की हमारे स्वास्थ्य की दृस्टि से बहुत ही ज्यादा नुकसान दायक होता है। इ

किसान साथियों इसलिए मध्यप्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ने किसानों से ये अपील की है की गर्मी में बोई जाने वाली मुंग की फसल में खरपतवारनाशकों और कीटनाशकों का उपयोग कम से कम मात्रा ने करे या उनकी बहुत ही सीमित मात्रा लगभग ना के बराबर ही करें। ताकि खरपतवारनाशकों और कीटनाशकों के उपयोग से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले न हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकें तथा इनको रोका जाए सकें।

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