जैविक खेती की ओर एक नया कदम: जानिए गीता देवी की प्रेरक कहानी Rajendra Suthar, October 22, 2024October 22, 2024 राजस्थान के अलवर जिलें के हाजीपुर गांव की रहने वाली गीता देवी की कहानी एक प्रेरणादायक है, जो न केवल व्यक्तिगत सफलता की मिसाल है, बल्कि यह एक बड़े बदलाव का प्रतीक भी है। आज जब रासायनिक खादों और कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों के बारे में सुनते हैं, गीता देवी ने जैविक खेती को अपनाकर एक नई दिशा दिखाई है।रासायनिक खाद का दुष्प्रभावरासायनिक खादों का अधिक उपयोग करने से कृषि में न केवल फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि यह स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरे उत्पन्न करता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि रासायनिक खादों का प्रयोग करने से मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे बीमारियाँ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ती हैं। गीता देवी ने जब यह सच्चाई समझी, तो उन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़ने का निर्णय लिया।Also Read देशी गाय के गोबर से बने कचरा डीकंपोजर से मिट्टी की सेहत में सुधार: जानिए कैसे जैविक खेती का सफरगीता देवी ने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाने का साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने सबसे पहले सरसों, बाजरा, और गेहूं जैसी प्रमुख फसलों में जैविक खेती का प्रयोग किया। इस प्रक्रिया में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे, उनके अनुभव और ज्ञान ने उन्हें सफल बनाने में मदद की।गीता देवी ने यह महसूस किया कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह फसलों की गुणवत्ता और पोषण के मूल्य को भी बढ़ाती है। इसके बाद उन्होंने सब्जियों की खेती में भी जैविक तरीकों का उपयोग करना शुरू किया। इस दिशा में उनका प्रयास सिर्फ खुद के लिए नहीं था, बल्कि उन्होंने अपने समुदाय की अन्य महिलाओं को भी इस प्रक्रिया में शामिल करने का निर्णय लिया।स्वयं सहायता समूह का गठन : गीता देवी द्वारा “खुशी” नामक एक स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया। इस समूह सेअन्य महिलाओं को जोड़ा गया। यह समूह न केवल महिलाओं को संगठित करता है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने को भी प्रेरित करता है। समूह के माध्यम से, महिलाएं एक-दूसरे के अनुभवों से सीख रही हैं और अपने ज्ञान को साझा कर आगे बढ़ रही है।समूह के गठन से पहले गांव की महिलाएं पारंपरिक खेती किया करती थीं, जिसमें रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग होता था। लेकिन वे अब जैविक तरीकों के माध्यम से खेती कर रही है। जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हो रही है, बल्कि उनकी फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर हो रही है।प्राकृतिक कीटनाशकों का निर्माणAlso Read त्यौहारी सीजन में सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही लेकिन फिर भी किसानों को नहीं मिल पा रहा उनकी मेहनत का लाभ गीता देवी ने अपने समूह के साथ मिलकर प्राकृतिक कीटनाशक बनाना शुरू किया। यह कीटनाशक न केवल फसलों को सुरक्षित रखते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक नहीं होते। इससे उन्हें अपने फसलों में होने वाले कीटों से लड़ने में मदद मिली, और उनकी उपज में बढ़ोतरी हुई।इस पहल ने न केवल गीता देवी को बल्कि अन्य महिलाओं को भी अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद की। आज, उनके समूह की महिलाएं अपने उत्पादों को बाजार में अच्छे दामों पर बेच रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो रही है।गीता देवी की कहानी केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक बदलाव का भी प्रतीक है। उन्होंने न केवल अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी संगठित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।उनका यह सफर केवल व्यक्तिगत सफलता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने अपने गांव की महिलाओं को सशक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब, गांव की महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं और अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार कर रही हैं।गीता देवी का जैविक खेती की ओर सफर बताता है कि अगर हम ठान लें तो हम किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं। उनका यह उदाहरण न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए जागरूक रहना चाहिए।अगर हम सभी किसान जैविक खेती की ओर बढ़ें, तो यह न केवल हमारी सेहत के लिए बेहतर होगा, बल्कि यह हमारे देश के विकास में भी सहायक होगा। गीता देवी की तरह, अगर हम सभी एकजुट होकर काम करें, तो हम अपने समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं।निष्कर्षगीता देवी की कहानी एक सशक्त संदेश है कि हम अपने निर्णयों से अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। जैविक खेती अपनाकर, न केवल हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि हम अपने समुदाय और देश के विकास में भी योगदान दे सकते हैं। Blog कृषि समाचार