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कृषि का नया आयाम : जानिए प्राकृतिक खेती और देशी गोपालन का जादू

Rajendra Suthar, October 7, 2024October 7, 2024

आज के समय में जहाँ देश के अनेक किसान और पशुपालक रासायनिक खेती के जरिए अधिक मुनाफा कमाने की चाहत में लगें हुए है। वहीं अब इसके दुष्प्रभाव भी तेजी से सामने आ रहे हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से तैयार अनाज, दूध और घी न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, बल्कि इससे जीव-जंतुओं और पर्यावरण पर भी बुरा असर देखने को मिल रहा है। इस स्थिति को देखते हुए, कुप्रथाओं से परेशान किसान एक बार फिर से प्राकृतिक खेती और देसी नस्ल के गोवंश के पालन की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

नवाचारी किसान साथी अब अपने अनुभव साझा करने के लिए दूसरे काश्तकारों को परंपरागत खेती करने की सीख दे रहे हैं। हाल ही में आयोजित एक कृषि शिविर में देश के 13 राज्यों के सैकड़ों किसान शामिल हुए, जो प्राकृतिक खेती और देसी गोपालन के माध्यम से न केवल अपनी फसलें सुधार रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य और वातावरण को शुद्ध करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

गन्ने के रस से पाचन तंत्र की मजबूती

उत्तर प्रदेश के जितेन्द्र कुमार ने बताया कि वे पिछले 13 वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वे गन्ने के रस को तीन से चार महीने तक मटके में रखते हैं और इस प्रक्रिया से एक प्रभावशाली दवाई तैयार करते हैं। यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है। इसके साथ ही देशी गाय के गोबर के कंडे जलाकर, उसमें कपूर, लौंग और तेल मिलाकर दंत मंजन तैयार किया जाता है जो दांतो के लिए बेहद फायदेमंद है।

पंचकव्य और अन्य औषधियाँ

शिवपाल गंगवाल, शाहजापुर, उत्तर प्रदेश से, ने बताया कि वे 2009 से प्राकृतिक खेती कर रहे है और देशी नस्लों पर भी काम कर रहे हैं। वे देशी गाय के दूध से पंचकव्य तैयार करते हैं, जिसमें दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर मिलाकर औषधिया बनाई जाती है। ये औषधिया नाक और सिर की बीमारियों के लिए फायदेमंद साबित हुई है।

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जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयाँ

महाराष्ट्र के किसान गजानन रामराव घुमनर ने प्राकृतिक खेती के द्वारा बोई गई जड़ी-बूटियों के उपयोग से त्रिफला चूर्ण तैयार किया। उन्होंने बबूल की निंबोली, आंवला, लौंग, अजवाइन और सैंचा नमक मिलाकर दंत मंजन भी तैयार किया जो दांतों को मजबूत रखने में मदद करता है। सके साथ ही, अर्जुन की छाल से बनाई गई दवा खून को पतला करने और शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद है।

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से बंपर पैदावार

उत्तराखंड के मोहन कोशेवाल ने बताया कि उनके क्षेत्र में पहाड़ी है जिसके कारण वहां पानी की कमी नहीं है जिससे किसानो को प्राकृतिक खेती करने में पानी की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले वे रासायनिक खेती भी करते थे जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई लेकिन मिट्टी और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा। तब से उन्होंने प्राकृतिक और जैविक खेती को फिर से अपनाया, जिससे अब चौलाई, बलुआ, आलू, मटर, और राजमा जैसी फसलों की बंपर पैदावार हो रही है।

शुद्ध बाजरे और देसी घी से बनाए बिस्किट

सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ तहसील के दिसनाठ गांव के नरेन्द्र सिंह शेखावत ने प्राकृतिक खेती से उत्पादित बाजरे में देशी घी का उपयोग करके बिस्किट बनाए हैं, जो जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। जिससे बाजार में बाजरे को बेचने से मिलने वाला लाभ इस उत्पाद से अधिक है। इसके साथ ही उनके उनके गांव में स्वयं सहायता समूहों की स्थापना की गई है, जहाँ महिलाएं यह बिस्किट बनाती हैं।

निष्कर्ष

प्राकृतिक खेती और देशी गोपालन का यह प्रयास न केवल किसानो के लिए बल्कि समस्त मानवता और पर्यावरण के लिए आवश्यक है। जब किसान अपने उत्पादों के माध्यम से न केवल अपनी आय में बढ़ोतरी कर रहे है बल्कि समाज और पर्यावरण के स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता दे रहे हैं तो यह एक सकारात्मक बदलाव की ओर इशारा करता है।

इस दिशा में चल रहे नवाचारों और प्रयासों को देखते हुए उम्मीद है कि आने वाले समय में और अधिक किसान इस स्वच्छ और प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर होंगे। यह न केवल उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता दिलाएगा, बल्कि हमारी धरती को भी एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करेगा।

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