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परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana)

Rajendra Suthar, February 29, 2024February 29, 2024

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) एक कृषि सुधार कार्यक्रम है जिसकी शुरुआत 2015 में की गई थी आमतौर पर पारंपरिक खेती की अपेक्षा में जैविक खेती सेहत के लिए लाभदायक होती है। जैविक खेती में कीटनाशकों का उपयोग कम होता है। इसके साथ ही जैविक खेती भूजल और भूमि के साथ के पानी में नाइट्रेट की लीचिंग को भी कम करती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिसके लिए सरकार ने Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY) का शुभारंभ किया। इस योजना के तहत किसानो को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है

इस योजना के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान एवं आधुनिक विज्ञान के माध्यम से जैविक खेती के स्थाई मॉडल को विकसित किया जाएगा। PKVY का मुख्य उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना है। इस योजना के माध्यम से क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण, मूल्यवर्धन और विपरण के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना को सन 2015-16 में रसायनिक मुक्त जैविक खेती को क्लस्टर मोड में बढ़ावा देने के लिए आरंभ किया गया था।

परंपरागत कृषि विकास योजना का उद्देश्य (PKVY Objective)

PKVY योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना है। जिसके तहत किसानो को आर्थिक सहयता प्रदान की जाती है यह योजना मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने में भी लाभकारी साबित होगी। इसके अलावा परम्परागत कृषि विकास योजना के माध्यम से रसायनिक मुक्त एवं पौष्टिक भोजन का उत्पादन हो सकेगा क्योंकि जैविक खेती में कम कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। परम्परागत कृषि विकास योजना पर्यावरण के अनुकूल है जिसमे कम लागत की तकनीकों को अपनाकर रसायनो और कीटनाशकों का उपयोग बंद कर एक अच्छी उपज को प्राप्त करना है। इस योजना को जैविक खेती को क्लस्टर मोड में बढ़ावा देने के उद्देश्य से भी आरंभ किया गया है।

परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता

इस योजना के तहत क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण, मूल्यवर्धन और विपरण के लिए ₹50000 प्रति हेक्टेयर 3 वर्ष की के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसमें मूल्यवर्धन और विपरण के लिए ₹8800 प्रति हेक्टेयर 3 वर्षों के लिए प्रदान किया जाता है और ₹31000 प्रति हेक्टेयर 3 वर्ष जैविक पदार्थों जैसे कि जैविक उर्वरकों, कीटनाशकों, बीजों आदि की खरीद के लिए प्रदान किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत पिछले 4 वर्षों में ₹1197 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है। परम्परागत कृषि विकास योजना के माध्यम से क्लस्टर निर्माण एवं क्षमता निर्माण के लिए ₹3000 प्रति हेक्टेयर 3 वर्षों के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है। जिसमें एक्स्पोज़र विजिट और फील्ड कर्मियों के प्रशिक्षण शामिल है। यह राशि किसानों के खाते में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से वितरित की जाती है।

इस योजना के तहत प्रत्येक क्लस्टर के लिए 14.95 लाख रुपए की आर्थिक सहायता मोबिलाइजेशंस, मनूर मैनेजमेंट, एवं पीजीएस सर्टिफिकेट के एडॉप्शन के लिए प्रदान की जाएगी। 50 एकड़ या 20 हेक्टेयर के क्लस्टर के लिए अधिकतम ₹1000000 की आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाएगी। खाद प्रबंधन और जैविक नाइट्रोजन संचयन की गतिविधियों के अंतर्गत प्रत्येक किसान को अधिकतम ₹50000 की राशि प्रति हेक्टेयर उपलब्ध करवाई जाएगी। इसके अलावा कुल सहायता में से 4.95 लाख रुपए प्रति क्लस्टर पीजीएस प्रमाणन और गुणवत्ता नियंत्रण को जुटाने और अपनाने के लिए कार्यान्वयन एजेंसी को मुहैया कराए जाएंगे।

परम्परागत कृषि विकास योजना की मुख्य विशेषताए

  • जैविक खेती के लिए चुना गया क्लस्टर 20 हेक्टेयर या 50 एकड़ की सीमा में और जितना संभव हो उतना सन्निहित रूप में होना चाहिए।
  • 20 हेक्टेयर या 50 एकड़ क्लस्टर के लिए उपलब्ध कुल वित्तीय सहायता अधिकतम 10 लाख रुपए होगी।
  • एक क्लस्टर में किसानों की कुल संख्या में कम से कम 65% किसानों को लघु और सीमांत श्रेणी के लिए आवंटित किया जाएगा।
  • इस योजना के अंतर्गत बजट आवंटन का कम से कम 30% महिला लाभार्थी/किसानों के लिए निर्धारित करना आवश्यक है

परम्परागत कृषि विकास योजना के लाभ

PKVY योजना के तहत विभिन्न प्रकार के लाभ उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार हैं-

जैविक खेती को बढ़ावा: इस योजना के तहत, किसानों को जैविक खेती की ओर अग्रसर किया जाता है, जिससे उनके उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

आर्थिक सहायता: किसानों को जैविक खेती के लिए आवश्यक सुविधा और अन्य संबंधित गतिविधियों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।

प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता: किसानों को जैविक खेती की विधियों, बेहतर उत्पादन तकनीकों, और पोषण प्रबंधन आदि के बारे में प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है।

मृदा स्वास्थ्य सुधार: जैविक खेती से मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होता है, जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है।

पर्यावरण संरक्षण: रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग में कमी लाकर, यह योजना पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती है।

बाजार में बेहतर मूल्य: जैविक उत्पादों की मांग में वृद्धि के कारण, किसानों को उनके उत्पादों के लिए बाजार में बेहतर मूल्य मिलता है।

जैव विविधता का संरक्षण: जैविक खेती से जैव विविधता का संरक्षण होता है, क्योंकि यह कीटों और रोगों के प्रतिरोधी प्रजातियों को बढ़ावा देता है।

स्वास्थ्य लाभ: रासायनिक मुक्त उत्पादों का उपयोग स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ताओं के बीच इन उत्पादों की मांग बढ़ती है।

समूह खेती को बढ़ावा: इस योजना के तहत समूह खेती को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे किसानों को संसाधनों का साझा उपयोग करने और आपसी सहयोग से लाभ उठाने का अवसर मिलता है।

परंपरागत कृषि विकास योजना किसानों को जैविक खेती की ओर मार्गदर्शन करती है और उन्हें आर्थिक, पारिस्थितिकीय और सामाजिक लाभ प्रदान करती है।

परंपरागत कृषि विकास योजना का कार्यान्वयन

राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन – प्रधानमंत्री कृषि विकास योजना का क्रियान्वयन इंटीग्रेटेड न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट के तहत आने वाले ऑर्गेनिक फार्मिंग विभाग के जरिए किया जाएगा। इस योजना के निर्देश नेशनल एडवाइजरी कमेटी के जॉइंट डायरेक्टर द्वारा निर्धारित किए जाएंगे। इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के माध्यम से भी लागू किया जाएगा।

राज्य स्तर पर कार्यान्वयन – राज्य स्तर पर, यह योजना राज्य के कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा लागू की जाएगी। इसे विभाग द्वारा पंजीकृत क्षेत्रीय परिषदों के सहयोग से अमल में लाया जाएगा।

जिला स्तर पर कार्यान्वयन – जिला स्तर पर इस योजना को क्षेत्रीय परिषद के माध्यम से लागू किया जाएगा। एक जिले में एक या अधिक क्षेत्रीय परिषद हो सकती हैं, जिन्हें सोसाइटीज एक्ट, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, सहकारी अधिनियम या कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाएगा।

PKVY के अंतर्गत मॉडल ऑर्गेनिक क्लस्टर्ड डिमॉन्सट्रेशन

मॉडल ऑर्गेनिक क्लस्टर्ड डिमॉन्सट्रेशन के द्वारा जैविक खेती की नवीनतम विधियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न की जाएगी, ताकि ग्रामीण युवा, कृषक, उपभोक्ता और व्यवसायी जैविक खेती अपना सकें। यह पहल परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत की जाएगी। इस योजना को लागू करने वाली संस्थाएँ नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग, पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम, पंजीकृत क्षेत्रीय परिषद, और डीएसी व F.W. के अन्य सरकारी संगठन होंगे। इस योजना के अंतर्गत, प्रदर्शन विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की देखरेख में प्रदर्शनी आयोजित की जाएंगी। इसके साथ ही, इस योजना के उचित कार्यान्वयन के लिए एक परियोजना प्रदर्शन टीम का भी सृजन किया जाएगा।

योजना के अंतर्गत मॉडल ऑर्गेनिक फार्म –

मॉडल ऑर्गेनिक फार्म के माध्यम से परंपरिक भूमि को एक हेक्टेयर के जैविक कृषि पद्धति में परिवर्तित किया जाएगा। इसके अलावा किसानों को विभिन्न नवीनतम तकनीकों से संबंधित भी जानकारी प्रदान की जाएगी। जिससे कि वे जैविक खेती कर सकें। प्रति एक संगठन को न्यूनतम 1 वर्ष में अधिकतम तीन मॉडल आवंटित किए जाएंगे।

परंपरागत कृषि विकास योजना की पात्रता (PKVY Eligibility 

  • योजना के अंतर्गत आवेदक भारत का स्थाई निवासी होना अनिवार्य है।
  • आवेदन करने के लिए आवेदक किसान होना चाहिए।
  • आवेदक की आयु 18 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए।

परंपरागत कृषि विकास योजना के लिए आवश्यक दस्तावेज

  • आधार कार्ड
  • निवास प्रमाण पत्र
  • आय प्रमाण पत्र
  • आयु प्रमाण पत्र
  • राशन कार्ड
  • मोबाइल नंबर
  • पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ

परंपरागत कृषि विकास योजना की आवेदन प्रक्रिया (Online Application)

सर्वप्रथम आपको परम्परागत कृषि विकास योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा। होम पेज पर रजिस्टर के मेन्यू पर क्लिक करें।

Register पर क्लिक करने के बाद एक नया पेज ओपन होगा जिसमे category को सेलेक्ट करें।

Individual Farmer मेन्यू पर क्लिक करने पर एक नया पेज ओपन होगा जिसमे नाम, मोबाइल नंबर, जिला, राज्य तथा अन्य आवश्यक जानकारी को भरे तथा अंत में रजिस्टर के मेन्यू पर क्लिक करके प्रक्रिया को पूर्ण करे।

किसानों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न

परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत कब की गई थी?

परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत 2015 में की गई।

योजना के अंतर्गत पिछले 4 वर्षो में कितनी राशि खर्च की जा चुकी है ?

इस योजना के अंतर्गत पिछले 4 वर्षों में ₹1197 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है।

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