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ग्वार की खेती कब और कैसे करें (Gwar Ki Kheti Kese Karen)

Rajendra Suthar, February 24, 2024February 24, 2024

ग्वार एक दलहनी फसल है, ग्वार प्रमुख रूप से चारे एवं दाने की फसल के रूप में उगाई जाती है। इसके दानों से गोंद भी तैयार किया जाता है। ग्वार (cluster bean) का वैज्ञानिक नाम ‘साया मोटिसस टेट्रागोनोलोबस’ (Cyamopsis tetragonolobus) है। ग्वार की खेती विशेष रूप से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और कर्नाटक के शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में की जाती है। यह फसल कम पानी में भी अच्छी तरह से उग सकती है, इसलिए यह सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक आदर्श फसल मानी जाती है।

ग्वार की खेती के लिए ज्यादातर हल्की बलुई या दोमट मिट्टी प्रभावी रहती है जिसमें अच्छी जल निकासी की सुविधा हो। इसकी बुवाई आमतौर पर मानसून के शुरूआती दौर में की जाती है। ग्वार की फसल को अत्यधिक नमी और अत्यधिक सूखे दोनों की स्थिति में नुकसान पहुँच सकता है, इसलिए सिंचाई के प्रबंधन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। ग्वार के बीजों में अत्याधिक प्रोटीन (40-45 प्रतिशत) तथा उच्च गुणवत्ता वाला गैलेक्टोमैनन नामक ग्वारगम मिलने के कारण ग्वार को औद्योगिक फसल का दर्जा दिया गया है।  

ग्वार की उन्नत किस्में (Gwar ki Unnat Kisme)

ग्वार की खेती की उन्नत पैदावार के लिए उन्नत किस्मो का प्रयोग करना चाहिए। ग्वार की फसल की बुवाई का सही समय जुलाई का प्रथम सप्ताह एवं जहां पर सिंचाई के साधन उपलब्ध हो वहां ग्वार की फसल की बुवाई जून के अन्तिम सप्ताह में भी कर सकते हैं।

फसल का प्रकार उन्नत किस्में विशेषताए औसत उपज (क्विंटल/हेक्टेयर)
ग्वार के दाने एवं ग्वार गमएच जी -365ग्वार की शाखित, रोमयुक्त तना, बिना कटाव की पत्तीवाली तथा जल्दी से पकनेवाली किस्म है।17-20
एच जी -563ग्वार की शाखित, रोमयुक्ततना, कोमल पर्णयुक्त तथा जल्दी से पकने वाली किस्म है।18-21
आर जी सी -1066ग्वार की अशाखित मध्यम अवध में पकने वाली रोमयुक्त तना वाली किस्म है।15-18
आर जी सी -1003ग्वार की शाखित जल्दी से पकने वाली किस्म है।15-19
ग्वार की सब्जीदुर्गा बहारग्वार की अशाखित, देरी से पकने वाली, सफेद फूल की किस्म है50-60
पूसा नवबहारग्वार की अशाखित, ग्लैबरस देरी से पकने वाली, किस्म है।40-51
चारे के लिए एच एफ जी -119ग्वार की शाखित, रोमयुक्त तना, गहरे कटाव की पत्ती वाली तथा बहुत देरी से पकने वाली किस्म है।130 -140
एच एफ जी -156ग्वार की अशाखित, रोमयुक्त तना, बिना कटाव की पत्ती वाली तथा देरी से पकने वाली किस्म है।130-145

ग्वार की खेती के लिए उत्तम जलवायु (Gwar Ki Kheti Ke Lie Uttam Jalavaayu)

ग्वार के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है क्योकि ग्वार उष्णकटिबंधीय पौधा है। ग्वार की खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। ग्वार की वृद्धि एवं उन्नत पैदावार के लिए 25-30०C तापमान अनुकूल पाया गया है। इतना तापमान अच्छी वानस्पतिक वृद्धि करता है, लेकिन फूल अवस्था में उच्च तापमान फूल गिरने का कारण बनता है।

ग्वार के वृद्धि काल के दौरान लगभग 500 से 600 मि.मी. वर्षा होना आवश्यक हैं। पकने के समय साफ मौसम तथा 60 से 65 प्रतिशत आर्द्रता चाहिये। फसल पकने के समय अधिक वर्षा हानिकारक होती है।

ग्वार की खेती के लिए उत्तम मिट्टी (Gwar Ki Kheti Ke Lie Uttam Mittee)

ग्वार की खेती के लिए दुमट एवं बलुई दुमट भूमि सर्वोत्तम होती है। इसे सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार की स्थितियों में उगाया जा सकता हैं। गर्मी में एक या दो जुताई और वर्षा के बाद एक या दो जुताई करके पाटा लगाकर खेत तैयार कर लेना चाहिए, जिससे खरपतवार अच्छी तरह से नष्ट हो सके ।

ग्वार की फली मध्यम से हल्की बनावट वाली मिट्टी में उगाई जाती है जिसका पीएच 7.0 से 8.5 के बीच होता है। फसल में अधिक पानी होने की स्थिति में फसल की वृद्धि को प्रभावित करती है। भारी दोमट मिट्टी किसी भी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। उच्च नमी वाले क्षेत्र में फसल की वृद्धि प्रभावित होती है। ग्वार की फसल से अधिक उपज लेने के लिए भूमि उपचार अवश्य करना चाहिए। जिससे कीड़े एवं दीमक आदि की रोकथाम हो सके।

ग्वार की फसल की बुवाई का सही समय (Gwar Ki Fsal Buvaee Ka Time)

ग्वार की फसल के लिए यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो चारे एवं सब्जी के लिए बुवाई मार्च में कर देनी चाहिए। ग्वार के दाने की फसल हेतु वर्षा होने के बाद 15 जुलाई तक (प्रथम पखवाड़ा) बुवाई कर देनी चाहिए। यदि वर्षा देर से हो तो 30 जुलाई तक अवश्य कर देनी चाहिए।

बीज उपचार – बीज को बोने से पहले उपचारित अवश्य कर लेना चाहिए। बीज उपचारित करने से फसल में कीड़े एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है। बीज उपचार करने के लिए 2.5 ग्राम थाइरम या केप्टान को प्रति किग्रा. बीज के लिए उपयोग में लेना चाहिए। बीजों को दवा से उपचारित करने के बाद राइजोवियम कल्चर से भी उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए 100 ग्राम गुड़ को एक लीटर पानी में मिला कर उबाल लेना चाहिए। घोल को ठंडा करने के बाद राइजोवियम कल्चर का एक पैकिट (250 ग्राम) मिला दें। 10 किग्रा. बीज को उपयुक्त घोल में मिलाकर छाया में सुखा लें। अच्छी तरह सुखने के बाद बीज की बुवाई 24 घंटे के अन्दर कर लेना चाहिए।

ग्वार की बुवाई की विधि (Gwar i buvaee Ka Time))

ग्वार की फसल की अधिक उपज के लिए बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से 15 सेमी. होनी चाहिए। कतारों में बुवाई करने से पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है, जिससे पौधों में शाखा, फलियों की संख्या, दानों की संख्या एवं आकार बढ़ जाता है।

ग्वार की अन्तः फसल – ग्वार की यह फलीदार फसल होने के कारण वायुमण्डल से नाइट्रोजन का संचय करती है, जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है अतः इस फसल को बाजरा एवं मोठ के साथ अन्तःफसल के रूप में भी उगाया जा सकता है।

खाद एवं उर्वरक – ग्वार की फसल की उपज बढ़ाने के लिए खाद एवं उर्वरकों का उपयोग अति आवश्यक है। ग्वार फलीदार फसल होने के कारण नाइट्रोजन वायुमण्डल से संचय कर लेती है फिर भी अधिक उपज हेतु 15-20 किग्रा. नाइट्रोजन एवं 40 किग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टयर पर्याप्त होती है। नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय 5-10 सेमी. की गहराई में डालना चाहिए। रेतीली भूमियों में जलधारण क्षमता कम होने के कारण 5-6 टन प्रति हैक्टयर सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि तैयारी के समय डालनी चाहिए।

सिंचाई तथा जल निकास – ग्वार की फसल वर्षा आधारित होने के कारण फसल को सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी नमी की कमी लम्बे समय तक रहने की परिस्थिति में एक या 2 सिंचाई यदि उपलब्ध हो तो कर देनी चाहिए। गर्मी के मौसम में 3-4 सिंचाई पर्याप्त है। खरीफ के मौसम में खेत में जल निकास अति आवश्यक है। यह खेत में भरे हुए पानी को सहन नहीं कर सकती है।

खरपतवार नियंत्रण – शुष्क क्षेत्रों में फसल में खरपतवार नियंत्रण अति आवश्यक हैं। वर्षा ऋतु में खरपतवार अधिक संख्या में उग आते हैं, जिससे फसल की पैदावार कम हो जाती है। खरपतवार अधिक संख्या में होने पर 70 से 90 प्रतिशत तक उपज कम हो जाती है। खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुवाई के 25-30 दिनों बाद निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर 20-25 दिनों बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई करने से खरपतवारों की रोकथाम के अलावा भूमि में नमी भी संरक्षित रहती है। दानों की फसल हेतु फ्लूक्लोरालीन 1 किग्रा या पेन्डीमथालीन 1.5 किग्रा की दर से प्रति हैक्टर छिड़काव बुवाई के दो दिन पश्चात तक कर देना चाहिए।

अन्तर-फसल पद्धति – अंतवर्तीय फसल के रूप में ग्वार के साथ बाजरा 3: 1 के रूप में लाभकारी है।

फसल चक्र – ग्वार की फसल के साथ फसल चक्र को अपनाकर ग्वार की फसल में खरपतवार को कम किया जा सकता है और भूमि के उपजाऊपन को भी बनाए रखा जा सकता है। ग्वार के साथ निम्न फसल चक्र को अपनाया जा सकता है:-

ग्वार – फलियाँ
ग्वार – चना
ग्वार – सरसों

बीजोत्पादन – जब ग्वार के पौधों की पत्तियाँ सूख कर गिरने लगे एवं 50 प्रतिशत फलियाँ  एकदम सूखकर भूरी हो जाये तब कटाई करें। कटाई के बाद फसल को धूप मे सुखाकर श्रमिको या थ्रेशर मशीन द्वारा उसकी थ्रेशिंग (मडाई) करें। दानो को अच्छी तरह धूप में सुखा कर उचित भण्डारण करें।

सब्जी उत्पादनः- सब्जी के लिए उगाई गई फसल से समय-समय पर लम्बी, मुलायम एवं अधपकी फलियाँ तोडते रहना चाहिए।

चारा उत्पादनः- चारे के लिए उगायी गई फसल को फूल आने एवं 50 प्रतिशत फली बनने की अवस्था पर काट लेना चाहिए। इस अवस्था से देरी होने पर फसल के तनों मे लिग्निन का उत्पादन होने लगता है, जिससे हरे चारे की पाचकता एवं पौष्टिकता घट जाती हैं।

ग्वार की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट व कीट नियंत्रण (Gwar ki Fsal Mein Rog)

एफिड्स (माहू या चेंपा) – ग्वार की शीघ्र पकने वाली तथा एफिड रोधी किस्मों का चयन करें। इमिडाक्लोप्रिड17.8 एस. एल. 5 मिली./15 लीटर या डाइमेथोएट 30 ई. सी. 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बना कर पौधों में छिड़काव करना चाहिए।

लीफ हॉपर (जैसिड) – ग्वार की फसल की यदि एक पत्ती पर एक से अधिक निम्फ हो तो, फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 5 मिली./15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करना चाहिए।

सफेद मक्खी – फसल पर ट्राइजोफॉस 40 ई. सी. 2.0 मिली. प्रति लीटर या डायमेथोएट 30 ई. सी. 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

फली छेदक -क्विनॉलफॉस 25 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या प्रोफेनफॉस 50 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर पानी या  इन्डस्कार्ब 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव कर इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

पत्ती छेदक -क्विनॉलफॉस 25 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या प्रोफेनफॉस 50 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या डायमिथोंएट 30 ई.सी. 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिडकाव कर इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

ग्वार की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं रोग नियंत्रण (Gwar Ki Fsal Mein Keet)

जीवाणु पर्ण अंगमारी (ब्लाइट) -रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एच.जी.-365 व एच.जी.-563 लगाना चाहिए। बीजों को 100 पी. पी एम. स्ट्रेप्टोसायक्लिन से उपचारित करना चाहिए। पौधों की पत्तियों पर स्ट्रेप्टोसायक्लीन 150 पी. पी. एम. 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए।

आल्टरनेरिया लीफ स्पोट -ग्वार रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एच.जी.-365, आर.जी.सी.-1011 एवं एच.जी.-365 को लगाना चाहिए। 15 दिनों के अन्तर से, व बुवाई के 40 से 50 दिनों मे 1.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मेन्कोजेब नामक रासायन का छिडकाव करना चाहिए।

रूट रॉट कॉम्प्लेक्स – ग्वार की प्रतिरोधक किस्में एच.जी.- 365 व एच.जी.- 563 की बुवाई करें। भूमि द्वारा संक्रमित बीमारियाँ को रोकने के लिए खेत को अप्रेल-मई के महीने में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए।

चुर्ण आसिता (पाऊडरी मिल्डयू) – ग्वार की फसल पर घुलनशील गंधक 3 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 15 दिनों के अन्तराल पर छिडकाव करना लाभदायक रहता हैं।

किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न

ग्वार की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है?

सब्जी वाली ग्वार की फसल बुवाई के 50-65 दिनों में फलियां आनी शुरू हो जाती है।

ग्वार की खेती कौन से महीने में करें?

सब्जी के लिए ग्वार को फरवरी-मार्च में खेतों में बोया जाता है। जून-जुलाई में ग्वार मुख्य रूप से चारे और दाने के लिए पैदा की जाती है। इस फसल की बुआई प्रथम मानसून के बाद जून या जुलाई में की जानी चाहिए।

एक बीघा में ग्वार कितना होता है?

ग्वार का उत्पादन एक बीघा में लगभग 3 से 4 क्विंटल प्रति बीघा के करीब आता है।

ग्वार का सबसे अच्छा बीज कौन सा है?

राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुर के कृषि वैज्ञानिकों ने करण ग्वार या आरजीएस-3 वैरायटी को अच्छा बताया है।


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