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फ्रोजन भ्रूण तकनीक से जन्मा पहला बछड़ा: जानिए सम्पूर्ण जानकारी

Rajendra Suthar, September 24, 2024September 25, 2024

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। बीते शनिवार को विटिफाइड (फ्रोजन सीमन) भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के प्रयोग से देश का पहला घोड़े का बछड़ा, जिसका नाम ‘राज-शीतल’ रखा गया है, का जन्म हुआ। यह सफलता न केवल विज्ञान के क्षेत्र में एक नई ऊँचाई को दर्शाती है बल्कि देश में घोड़ों की कम हो रही आबादी को संरक्षित करने के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

तकनीकी प्रक्रिया : इस घोड़े के बछड़े का जन्म एक जटिल और सुनियोजित प्रक्रिया का परिणाम है। वैज्ञानिकों ने घोड़ी को फ्रोज़न सीमन पद्धति के माध्यम से गर्भवती किया। सीमन को 7.5वें दिन फ्लश किया गया और अनुकूलित कायोडिवाइस का उपयोग कर विट्रिफाई किया गया, जिसे बाद में तरल नाइट्रोजन में जमा किया गया।

दो महीनो के बाद भ्रूण को पिघलाया गया और एक सिंक्रनाइज्ड सरोगेट घोड़ी में स्थानांतरित किया गया जिससे उसे गर्भवती किया गया। यह प्रक्रिया विज्ञान की नवीनतम प्रगति को दर्शाती है और इसके माध्यम से घोड़ों के प्रजनन में नए आयाम स्थापित होगें।

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वैज्ञानिकों की भूमिका

इस सफलता के पीछे एक अनुभवी वैज्ञानिकों की टीम का योगदान है। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टी. राव तालुड़ी, डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. आर. के. देदड़, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. एम. कुट्टी, डॉ. एस. सी. मेहता, डॉ. टी. के. भट्टाचार्य और मिस्टर पासवान ने इस प्रोजेक्ट पर काम किया है। इससे पहले इस टीम ने मारवाड़ी घोड़े के 20 भ्रूण और जांरकारी घोड़े के 3 भ्रूणों को सफलतापूर्वक विट्रिफाई करने में सफलता हासिल की थी।

घोड़ों की घटती संख्या : भारत में घोड़ों की संख्या में लगातार कमी देखने को मिल रही है। 19वीं और 20वीं सदी के पशुधन गणना (2012-2019) के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार घोड़ों की संख्या में 52.71% की कमी आई है। ऐसे में घोड़ों की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र इस दिशा में हर तरह के प्रयास कर रहा है, ताकि घोड़ों की स्वदेशी नस्लों का संरक्षण किया हो सके। यह न केवल पशुपालन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर को भी बचाने में मदद करेगा।

प्रजनन तकनीक : वीर्य कायोप्रिजर्वेशन (फ्रोज़न सीमन), कृत्रिम गर्भाधान, भ्रूण प्रत्यर्पण और भ्रूण क्रायोप्रिजर्वेशन जैसी प्रजनन तकनीकों का उपयोग आजकल पशु प्रजातियों के संरक्षण में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के इस अश्व केंद्र ने इन सभी तकनीकों को अपनाया है।

डॉ. एस. सी. मेहता के अनुसार इस फ्रोजन तकनीक के माध्यम से अच्छे घोड़ों के बच्चे 10-20 वर्षों के बाद भी जरुरत के अनुसार पैदा किये जा सकेगें। इस तकनीक का उपयोग विशेष रूप से विलुप्त होती नस्लों के लिए फायदेमंद साबित होगा।

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फ्रोजन तकनीक (Frozen Technology) की विशेषताएँ

फ्रोजन भ्रूण स्थानांतरण तकनीक समय की मांग और आवश्यकता है। घोड़ों की कम हो रही नस्लों की समस्या के निवारण में यह तकनीक मददगार साबित होगी। भ्रूण के कायोप्रिजर्वेशन की इस तकनीक के द्वारा भ्रूण को निर्यात और आयात भी किया जा सकता है। साथ ही जब भी आवश्यकता हो तब उसे प्रत्यारोपित किया जा सकता है।

यह पद्धति न केवल घोड़ों के संरक्षण में सहायक होगी बल्कि भविष्य में घोड़ों की नस्लों को पुनर्जीवित करने में भी मदद करेगा। इस तकनीक के माध्यम से वैज्ञानिक न केवल घोड़ों की संख्या बढा सकते है बल्कि नस्लों की गुणवत्ता भी सुनिश्चित कर सकते है।

इस अग्रिम सफलता के बाद यह स्पष्ट है की हमे आधुनिक विज्ञान और तकनीकों का उपयोग करते हुए प्राचीन प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। घोड़ों की विलुप्त होती प्रजातियां एक गंभीर चिंता का विषय है, और इस समस्या का समाधान खोजने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे।

राष्ट्रिय अश्व अनुसन्धान केंद्र के वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि एक प्रेरणा है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि कैसे विज्ञान और तकनीक के संयोजन से हम प्राकृतिक संसाधनों और प्रजातियों के संरक्षण में प्रगति कर सकते हैं। घोड़ों के प्रति हमारी जिम्मेदारी केवल उनकी संख्या बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि हमें उनकी नस्लों की गुणवत्ता और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा।

इस तरह की तकनीकों को अपनाकर, हम एक स्थायी भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं, जहाँ पशुपालन न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध हो। ‘राज-शीतल’ का जन्म एक नई शुरुआत है, और यह दिखाता है कि विज्ञान किस प्रकार मानवता की सेवा कर सकता है।

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