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धान/ चावल की खेती कब और कैसे करें (Dhan/Chawal Ki Kheti Kese Karen)

Rajendra Suthar, February 24, 2024February 24, 2024

खरीफ फसलों में धान प्रमुख फसल है, धान का वैज्ञानिक नाम औराजया सैटाइवा है। धान (Paddy ) एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। चावल एक अनाज है, महान एशियाई नदियों जैसे गंगा, चांग (यांग्त्ज़ी), टिगरिस और यूफ्रेट्स के डेल्टा के मूल निवासी हैं। चावल का पौधा लंबा होता है और इसमें गोल, संयुक्त तना, लंबी नुकीली पत्तियां और खाद्य बीज होते हैं।

भारत चावल की खेती का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। चावल के उत्पादन में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है। चावल की खेती के तरीके विभिन्न होते हैं, लेकिन भारत में और अधिकांश एशियाई देशों में, यहाँ अभी भी पारंपरिक हाथ से कटाई के तरीकों का अभ्यास किया जाता है। चावल के खेतों को “धान” के रूप में भी जाना जाता है। भारत में चावल की कई किस्मों की खेती होती है। उचित क्षेत्र प्रबंधन प्रथाओं और सिंचाई सुविधा के साथ, चावल की खेती भारत में कम समय में लाभदायक होती है। चावल की खेती रबी और खरीफ मौसमों में की जाती है।

भारत के प्रमुख चावल उत्पादन राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, असम, तमिलनाडु, हरियाणा, केरल है।

धान/ चावल की प्रजातिया (Dhan/Chawal Ki Prajaatiya)

शीघ्र पकने वाली प्रजाति – नरेन्द्र-118, नरेन्द्र-80, नरेन्द्र-1, नरेन्द्र-2 मनहर, नरेन्द्र-97, पन्त धान-12, बारानी दीप, आई.आर.-50, रत्ना, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमती।

मध्यम देर से पकने वाली प्रजाति – नरेन्द्र-359, पन्त धान-4, पन्त धान-10, सीता, सरजू-52, मालवीय धान-36, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान-3112-1, नरेन्द्र धान-2026, नरेन्द्र धान-2065।

देर से पकने वाली प्रजाति – महसूरी, सांभा महसूरी

सुगन्धित धान प्रजाति – टाइप-3, नरेन्द्र लालमती, कस्तूरी, पूसा बासमती-1. हरियाणा बासमती-1, बासमती-370, तारावडी बासमती, मालवीय सुगंध, मालवीय सुगंध-4.3, वल्लभ बासमती-22. नरेन्द्र लालमती, नरेन्द्र सुगंध।

ऊसरीली धान प्रजाति –ऊसर धान-1, सी.एस.आर.-10, नरेन्द्र ऊसर धान-2 एवं ऊसर धान-3, सी.एस.आर.-13, नरेन्द्र ऊसर धान-2009।

निचले एवं जल भराव वाले क्षेत्र एवं बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के लिए – स्वर्णा एम.टी.यू. 7029 (उथला जलभराव), एनडीआर 8002, जल लहरी, जलमग्न, मधुकर जल निधि, जल प्रिया, बाढ़ अवरोधी, स्वर्णा सब-1, नरेन्द्र नारायणी

धान/ चावल के लिए आवश्यक जलवायु

धान की फसल के लिए समशीतोषण जलवायु की आवयकता होती है इसके पौधों को जीवनकाल में औसतन 20°C
से 37°C तापमान की आवश्यकता होती हैI धान/ चावल की खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी तथा उच्च आर्द्रता और लंबे समय तक धूप की आवश्यकता होती है। धान/ चावल के लिए गीला और गर्म मौसम अनुकूल रहता है।

धान/ चावल की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

चावल की खेती के लिए गाद, दोमट और बजरी जैसी मृदा उपयुक्त मानी जाती है और धान/ चावल अम्लीय के साथ-साथ क्षारीय मिट्टी को सहन कर सकती है। हालांकि, गहरी उपजाऊ (कार्बनिक पदार्थों से भरपूर) चिकनी या दोमट मिट्टी जो आसानी से कीचड़ में डाली जा सकती है और सूखने की स्थिति पर दरारें विकसित कर सकती है, चावल की फसल उगाने के लिए आदर्श मानी जाती है।

चावल की खेती में प्रसार: चावल की खेती में प्रसार बीज के माध्यम से किया जाता है।

धान/ चावल की खेती करने के तरीके

धान/ चावल के खेती करने की प्रमुख 4 विधियां प्रचलित है, जिसका प्रयोग करके धान/ चावल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है।

  • प्रसारण विधि – प्रसारण विधि में चावल के बीजो की बुवाई हाथों से की जाती है। यह पद्धति कम उपजाऊ भूमि और सुखी भूमि वाले क्षेत्रों में अपनायी जाती है। इस विधि द्वारा बुवाई की गयी फसलों की पैदावार कम होती है।
  • ड्रिलिंग विधि – यह विधि भारत के प्रायद्वीपीय तक ही सीमित है। इस प्रकार की विधि में दो व्यक्तियों द्वारा भूमि की जुताई और बुवाई की जाती है।
  • प्रत्यारोपण विधि – धान/ चावल की खेती के लिए ये सबसे प्रचलित विधि है, यह विधि प्रचुर वर्षा और उत्तम मृदा की उर्वरकता वाले क्षेत्रों में उपयोगी है। प्रत्यारोपण विधि में धान के बीज नर्सरी में बोए जाते हैं। एक बार जब बीज अंकुरित हो जाते हैं और रोपाई उखाड़ दी जाती है (आमतौर पर यह 5 सप्ताह के बाद होगा), तो इन रोपाई को मुख्य खेत में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इस प्रकार की विधि में अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। इस विधि में अच्छी उपज प्राप्त होती है।
  • जापानी विधि – इस विधि में अधिक उपज देने वाली किस्मों को शामिल किया गया है। इस विधि में प्रचुर मात्रा में खाद, उन्नत किस्म के बीजो का उपयोग किया जाता है। निराई और फर्टिगेशन निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार किया जाना चाहिए। उच्च उपज देने वाली संकर फसलों के लिए इस पद्धति को सफलतापूर्वक अपनाया जाता है।

खेत की तैयारी –धान/ चावल की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत तैयार करना चाहिए साथ ही खेत की मजबतू मेड बंदी कर देनी चाहिए जिससे वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके तथा रोपाई से पूर्व खेत पानी से भरकर जुताई कर दे और जुताई करते समय खेत को समतल कर लेना चाहिए।

धान/ चावल की खेती के लिए बीजों का चयन – धान/ चावल की खेती करने से पूर्व बीज शोधन अवश्य कर लें। इसके लिए जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग की समस्या हो वहां पर 25 किग्रा बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन को मिलाकर पानी में रात भर भिगो दें। दूसरे दिन छाया में सुखाकर बीजो की बुवाई करे। यदि जीवाणु झुलसा की समस्या क्षेत्रों में नहीं है तो 25 किग्रा, बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन निकालकर अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद 75 ग्राम श्रीरंग या 50 ग्राम कार्बन्डाजिम को 8-10 लीटर पानी में घोलकर बीज में मिला दिया जाये। इसके बाद छाया में अंकुरित करके मृदा में डाली जाये। बीज शोधन हेतु 5 ग्राम प्रति किया, ट्राइकोड़ों का प्रयोग किया जाये।

पौधों की तैयारी- एक हैक्टेयर खेत की रोपाई हेतु 30 से 35 किलोग्राम धान का बीज पौध तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है।
ट्राइकोडरमा का एक छिड़काव 10 दिन केअंतर पर पौधों पर कर देना चाहिए बुवाई के 10 – 15 दिन बाद पौधों पर कीटनाशक का छिड़काव कर देना चाहिए जिससे कोई कीट व रोग न लग सके। पौधो वाले खेतो में कड़ी धूप होने पर पानी निकाल देना चाहिए जिससे पौधे गल न सकेI सिंचाई शाम के समय 3 बजे के बाद करनी चाहिए जिससे रात भर में खेत पानी सोख जाए।

पौधों की रोपाई का समय – धान की रोपाई का उपयुक्त समय जून के तीसरे सताह से जुलाई के तीसरे सप्ताह के मध्य करनी चाहिए। इसके लिए धान को 21 से 25 दिन की तैयार पौध की रोपाई उपयुक्त होती हैI धान की रोपाई के लिए पंक्तयो से पंक्तियों की दूरी 20 सेंटीमीटरऔर पौधे से पौधे तक की दूरी 10 सेंटीमीटर तथा एक थान पर 2 से 3 पौधे लगाना चाहिए।

खाद और उर्वरकों का प्रयोग –धान की अच्छी उपज के लिए खेत में आख़री जतुाई के समय 100 से 150 क्विंटल/हैक्टेयर गोबर की सड़ी खाद खेत में मिलाते है तथा उर्वरक में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रयोग करते हैI
सिंचाई प्रबंधन – धान की फसल को फसलो में सबसे अधिक पानी की आवयकता पड़ती है फसल को कुछ विशेष अवस्था में
रोपाई के बाद एक सताह तक फूल निकलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना अति आवश्यक हैI
खरपतवार का नियंत्रण – धान की फसल में खरपतवार नष्ट करने के लिए खरुपी या पैडिवीडर का प्रयोग करते है एवं रसायन विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 3-4 दिन के अंदर पैडिमैथलींन 30 ई. सी. की 3.3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से 700 से 800 लीटर पानी मिलाकर खेत में प्रयोग करने से खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से होता हैI

धान/ चावल की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं रोग नियंत्रण

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग सफ़ेद रोग, विषाणु झुलसा, शीथ झुलसा, भूरा धब्बा, जीवाणु धारी, झोका, खैरा इत्यादि है इन सभी के प्रबंधन के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है:-

खेत की जुताई तथा मेडों की छटाई करते हुए घास की सफाई करना अति आवश्यक है।

  • समय पर रोग प्रतिरोधी सहिष्णु प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
  • बीज शोधन करके ही खेत में बुवाई करनी चाहिए।
  • बीज को तीन ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।
  • बीज को 1.50 ग्राम के साथ 1.50 ग्राम कार्बेन्डाजिम से प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। झुलसा की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किलोग्राम बीज के लिए 38 ग्राम ऍम ई ऍम सी तथा 4 ग्राम स्ट्रेप्तोसाईक्लीन को 45 लीटर पानी में बीज को रात भर भिगो दे और छाया में सुखाकर नर्सरी में बुवाई करनी चाहिए।
  • 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट को 20 किलोग्राम यूरिया 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। इसके बाद 5 किलोग्राम फेरस सल्फेट की 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 800 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। क्षेत्र के अनुसार प्रजातियों की बुवाई करके पौध रोपण करना चाहिए।
  • बीज शोधन 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राईकोडर्मा के साथ 60 से 80 किलोग्राम गोबर की खाद से भूमि शोधन आख़िरी जुताई में मिलाकर करना चाहिए।

धान की फसल में कीट और उनका नियंत्रण

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट जैसे दीमक, पत्ती लपेटक कीट, गन्धी बग, सैनिक कीट, तना बेधक आदि लगते है। इन सब के नियंत्रण के लिए खेत की जुताई तथा मेड़ों की छटाई एवम घास की सफाई कर देना चाहिए , फसल को खरपतवारों से मुक्त रखें ,अगेती एवम समय से पौध डालकर तैयार पौधो की रोपाई करे। अवरोधी प्रजातियों की बुवाई करके फसल की उपज ले, अधिक दूरी पर 20 सेंटीमीटर x 20 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई करे, प्रत्येक 20 कतार के बाद एक कतार छोड़कर रोपाई करे स्वच्छ उर्वरको का प्रयोग करे, सिंचाई का उचित प्रबंध रखे , रोपाई से पहले वाली फसल के अवशेषों को भली भांती नष्ट कर देना चाहिए , रोपाई के पहले पौध के उपरी भाग को नष्ट कर रोपाई करे, 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर नीम का आधारी कीटनाशको का प्रयोग करे अंत में क्यूनालफास 25 ई सी का 1.25 लीटर या क्लोरोपईरीफास 20 ई.सी. का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करना चाहिए।

फसल की कटाई

जब खेत में 50 प्रतिशत बालियाँ पकने पर फसल से पानी निकाल देना चाहिए 80 से 85 प्रतिशत जब बालियों के दाने सुनहरे रंग के हो जाए अथवा बाली निकलने के 30 से 35 दिन बाद कटाई करना चाहिए इससे दानो को झड़ने से बचाया जा सकता है। अवांछित पौधों को कटाई के पहले ही खेत से निकाल देना चाहिए कटाई के बाद तुरंत ही मड़ाई करके दाना निकाल लेना चाहिए। उपज दो प्रकार की प्रजातियाँ मिलती है सिंचित और असिंचित दोनों प्रकार की प्रजातियों में पैदावार भी अलग-अलग पाई जाती है। सिंचित क्षेत्रों में सभी तकनीकी अपनाने पर 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है। असिंचित क्षेत्रों में सभी तकनीकी अपनाने पर 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है।

किसानों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न


धान की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

धान में बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब 3 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बोक्सिऩ + थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें।

1 एकड़ धान में कितना डीएपी डालना चाहिए?

डीएपी खाद को प्रति एकड़ में लगभग 50 किलो तक ही इस्तेमाल करना चाहिए।

धान में कब पानी देना बंद कर देना चाहिए?

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान रोपाई के 15 से 20 दिन तक खेत में पानी जमा रखना चाहिए। इससे खरपतवार आने की संभावना कम हो जाती है।

धान की सीधी बुवाई कब करें?

खरीफ में धान की सीधी बुआई मानसून आने से 10-12 दिनों पूर्व करें।

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