सोयाबीन की खेती कब और कैसे करें (Soyabean Ki Kheti Kese Karen) emandibhav.com, April 5, 2024April 9, 2024 मध्यप्रदेश में सोयाबीन की खेती के प्रमुखता के साथ-साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिनका सामना किसानों को करना पड़ता है। राज्य के लगभग 53 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में इस खरीफ फसल की खेती की जाती है, जिससे मध्यप्रदेश सोयाबीन उत्पादन में देश में अग्रणी बना हुआ है, जिसकी उत्पादन में 55 से 60 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी है। हालाँकि, इसकी उत्पादकता एशिया की औसत उत्पादकता 15 क्विंटल/हेक्टेयर की तुलना में कम है, जो केवल 10 क्विंटल/हेक्टेयर है। मालवा जलवायु क्षेत्र, जहाँ लगभग 22 से 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सोयाबीन उगाई जाती है, सोयाबीन की खेती में विशेष महत्व रखता है।खेती की चुनौतियों की बात करें तो, विभिन्न व्ययों में वृद्धि और विषम परिस्थितियों के कारण किसानों को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है। सोयाबीन की खेती के लिए चिकनी दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है, जबकि जल जमाव वाली भूमि से बचा जाना चाहिए। ग्रीष्मकालीन जुताई और समय-समय पर खेतों की तैयारी, जैसे बखर और पाटा चलाना, कीटों के नियंत्रण में मदद करता है और भूमि को भुरभुरी बनाए रखता है, जो कि सोयाबीन के लिए अनुकूल होता है। उचित जल निकासी और खरपतवार नियंत्रण भी उच्च उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं।इस प्रकार, मध्यप्रदेश में सोयाबीन की खेती से संबंधित विभिन्न तकनीकी और प्रबंधन संबंधी पहलुओं पर ध्यान देने से इसकी उत्पादकता और किसानों की आय में सुधार हो सकता है।सोयाबीन की उन्नत किस्मेंप्रजातिपकने की अवधि (दिनों में)औसत उपज (क्विंटल/ हैक्टेयर)प्रतिष्ठा100-10520-30जे. एस. 33595-10025-30पी. के. 1024110-12030-35एम. ए. यू. एस. 4758-9020-25एनआरसी 7(अहिल्या-3)100-10525-30एनआरसी 3795-10030-35एम. ए. यू. एस.-8193-9722-30एम. ए. यू. एस. 931590-9620-25सोयाबीन की खेती का समयजून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के पहले हफ्ते का समय खेती के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है। इस दौरान, बीजों के सही अंकुरण के लिए ज़मीन में कम से कम 10 सेंटीमीटर तक पर्याप्त नमी अनिवार्य है। जुलाई के पहले सप्ताह के बाद, बीजों की मात्रा में 5 से 10 प्रतिशत की वृद्धि करनी चाहिए। कतारों के बीच की दूरी को 30 सेंटीमीटर (छोटी किस्मों के लिए) और 45 सेंटीमीटर (बड़ी किस्मों के लिए) रखना चाहिए। हर 20 कतारों के बाद, जल निकासी और नमी संरक्षण के लिए एक खाली जगह छोड़ देनी चाहिए। बीजों को 2.50 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए।सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मृदा की आवश्यकतासोयाबीन के उत्पादन के लिए वातावरण का गर्म एवं आर्द्र होना अनुकूल माना जाता है। इसकी खेती हेतु आदर्श तापमान की रेंज 26 से 32 डिग्री सेल्सियस तक होती है। उत्तम जल निकासी क्षमता वाली दोमट मिट्टी, सोयाबीन की खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच मूल्य 6.0 से 7.5 के बीच होना आवश्यक है।सोयाबीन की खेती की तैयारीरबी की फसल कटने के बाद, हर तीन साल में एक बार खेतों की गहराई से जुताई रिवर्सिबल मोल्ड बोर्ड प्लाऊ के जरिए करनी चाहिए और हर साल खेतों को अच्छे से तैयार करें। गहरी जुताई के लिए रिजिड टाइन कल्टिवेटर या मोल्ड बोर्ड प्लाऊ का उपयोग करें। तीन सालों के अंतराल पर खेतों को समतल भी करना चाहिए। ग्रीष्मकालीन जुताई के बाद, सोयाबीन की फसल लगानी चाहिए। सोयाबीन लगाते समय यह सुनिश्चित करें कि वह पहले सीजन में लगाई गई फसल के साथ न मिले। और, सोयाबीन की बुवाई केवल तभी करें जब 100 मिमी या उससे अधिक वर्षा हो, कम वर्षा में इसकी बुवाई से बचें।सोयाबीन की बुवाई के लिए बीजो की मात्रासोयाबीन उगाने के लिए हमेशा विश्वसनीय और प्रमाणित बीजों का ही चयन करना चहिए। अगर आप अपने खेत से पिछले साल संग्रहीत बीजों का उपयोग करने का विचार रखते हैं, तो सुनिश्चित करें कि उन्हें बोने से पहले उचित रूप से उपचारित किया गया हो। प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के लिए, बाजार से बीज खरीदते समय सहकारी बीज भंडारों का रुख करें और खरीदी की रसीद हमेशा प्राप्त करें।सोयाबीन बोने की योजना बनाते समय, बीज की जरूरत उनके आकार पर निर्भर करती है। पौधे की संख्या प्रति हेक्टेयर 4 से 4.5 लाख के बीच होनी चाहिए। छोटे दाने वाली किस्मों के लिए, 60 से 70 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होती है, जबकि बड़े दाने वाली किस्मों के लिए यह मात्रा 80 से 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होनी चाहिए।सोयाबीन की खेती करने का तरीकासोयाबीन की खेती के लिए किसानों को पंक्तियों में बुवाई करने की सलाह दी जाती है ताकि फसल की निराई-गुड़ाई सुगमता से की जा सके। इसके लिए, सीड ड्रिल का उपयोग करते हुए बुवाई करना उचित होता है, जिससे बीज और उर्वरक का संयुक्त रूप से छिड़काव संभव हो सके।विशेष रूप से, सोयाबीन की बुवाई के लिए फरो इरिगेटेड रेज्ड बेड या ब्रॉड बेड फर्मिंग (बी.बी.एफ) तकनीक को अपनाना लाभकारी होता है। इस तकनीक से, हालांकि शुरुआती लागत में मामूली वृद्धि होती है, लेकिन यह लाभ को काफी बढ़ा देती है, खासकर विपरीत मौसमी परिस्थितियों में भी। इस पद्धति में, हर दो पंक्तियों के बीच में गहरी और चौड़ी नालियाँ बनाई जाती हैं, जो अतिरिक्त वर्षा के पानी को खेत से बाहर निकालने में मदद करती हैं। इससे फसल ऊंचाई पर सुरक्षित रहती है और अधिक वर्षा होने पर भी खेत में पानी भरने की समस्या से बची रहती है। इसके अलावा, कम वर्षा होने पर ये नालियाँ वर्षा जल को संग्रहित कर लेती हैं, जिससे पौधों को निरंतर नमी मिलती रहती है। नालियों की चौड़ाई के कारण प्रत्येक पौधे को पर्याप्त सूर्य प्रकाश और हवा मिलती है, जिससे पौधों की वृद्धि और उनमें फूल व फलियों के निर्माण में वृद्धि होती है, अंततः उत्पादन में सुधार होता है।सोयाबीन की बुवाई 45 सेमी से 65 सेमी की दूरी पर सीड ड्रिल की सहायता से या हल के पीछे खूंट से करनी चाहिए। कतारों में सोयाबीन की बुवाई करते समय कम फैलने वाली प्रजातियों जैसे जे.एस. 93-05, जे.एस. 95-60 इत्यादि के लिए बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 40 से.मी. रखें। वहीं अधिक फैलनेवाली किस्में जैसे जे.एस. 335, एन.आर.सी. 7, जे.एस. 97-52 के लिए 45 से.मी. की दूरी रखनी चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 4 सेमी से 5 सेमी. तक होनी चाहिए। इसकी बुवाई 3-4 से.मी. गड्डे से ज्यादा नही होनी चाहिए।खरपतवार नियंत्रण – फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक, खरपतवार को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण होता है। डोरा या कुल्फा का इस्तेमाल करके खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है। दूसरी निदाई को अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद किया जा सकता है। खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारों को नष्ट करने के लिए क्यूजेलेफोप इथाइल या इमेजेथाफायर का उपयोग किया जा सकता है।कीटनाशक के प्रयोग में, फ्लुक्लोरेलीन का छिड़काव किया जा सकता है। बोने के पश्चात और अंकुरण के पूर्व, एलाक्लोर, पेंडीमेथलीन, या मेटोलाक्लोर का उपयोग किया जा सकता है। तरल खरपतवार नाशियों के स्थान पर, ऐलाक्लोर का उपयोग किया जा सकता है। बोने के पूर्व और अंकुरण पूर्व, मिट्टी में पर्याप्त नमी व भुरभुरापन होना चाहिए।खाद एवं उर्वरक – उर्वरकों का उपयोग सोयाबीन की फसल के लिए मिट्टी की परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए। नाडेप खाद, गोबर खाद, कार्बनिक संसाधनों का अधिकतम (10-20 टन/हेक्टेयर) या वर्मी कम्पोस्ट (5 टन/हेक्टेयर) का उपयोग करें, साथ ही संतुलित रसायनिक उर्वरक प्रबंधन के अंतर्गत संतुलित मात्रा 20:60:80:40:20 नाइट्रोजन: स्फुर: पोटाश: सल्फर) का उपयोग करें।खेत में अंतिम जुताई से पूर्व उपयुक्त मात्रा में यूरिया और जिंक सल्फेट को मिट्टी में मिला दें, जैसे कि मिट्टी की परीक्षण द्वारा निर्धारित हो। इसके अलावा, जरूरत के अनुसार जस्ता और गंधक की पूर्ति के लिए अनुशंसित खाद और उर्वरक का उपयोग करें।सिंचाई – खरीफ मौसम में सामान्य रूप से सोयाबीन को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इस समय वायुमंडलीय नमी और मौसम की तापमान के कारण यह अपनी विकास और उत्पादन को संतुलित रख पाती है। हालांकि, सितंबर महीने में अगर खेत में नमी की कमी महसूस होती है, तो एक या दो हल्की सिंचाई करना सोयाबीन के उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकता है।सोयाबीन की कटाई – सोयाबीन को पकने में 50 से 145 दिनों का समय लगता है, जो उसकी किस्म पर निर्भर करता है। इसके परिपक्व होने पर, सोयाबीन की पत्तियां पीली हो जाती हैं और फली बहुत जल्दी सूख जाती है। कटाई के समय, बीजों में नमी की मात्रा लगभग 15 प्रतिशत होनी चाहिए।सोयाबीन में लगने वाले प्रमुख रोग और कीटसफेद मक्खी – सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 300 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।तंबाकू सुंडी – यदि इस कीट का हमला दिखाई दे तो एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी को 1.5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।बालों वाली सुंडी – बालों वाली सुंडी का हमला कम होने पर इसे हाथों से उठाकर या केरोसीन में डालकर खत्म कर दें । इसका हमला ज्यादा हो तो, क्विनलफॉस 300 मि.ली. या डाइक्लोरवास 200 मि.ली की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।काली भुंडी – यह कीट फूल बनने की अवस्था में हमला करते हैं। ये फूल को खाते हैं, और कलियों में से दाने बनने से रोकते हैं। यदि इसका हमला दिखाई दे तो, इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस सी 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। स्प्रे शाम के समय करें और यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के बाद 10 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।पीला चितकबरा रोग और रोकथाम – यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। इससे अनियमित पीले, हरे धब्बे पत्तों पर नज़र आते हैं। प्रभावित पौधों पर फलियां विकसित नहीं होती।इसकी रोकथाम के लिए पीला चितकबरा रोग की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। सफेद मक्खी को रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 400 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न1 एकड़ में कितना सोयाबीन बोना चाहिए?बुवाई के लिए लगभग 30-35 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त हैं।सोयाबीन की 1 एकड़ में कितनी पैदावार होती है?सोयाबीन की बेस्ट किस्मो की बुवाई करके आप प्रति एकड़ उत्पादन ज्यादा ले सकते हैं – JS 9560, JS 9305, NRC 7, NRC 37, JS 335, JS 9752, JS 2029, JS 2069, JS 2034, आदि किस्मों से लगभग 15 क्विंटल तक प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं। कृषि सलाह