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बाजरे की खेती कब और कैसे करें (Bajare Ki Kheti Kese Karen)

Rajendra Suthar, April 4, 2024April 4, 2024

बाजरा, शुष्क क्षेत्रों में उगने वाली एक प्रमुख खाद्य फसल है, जिसकी भारत में लगभग 51 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती की जाती है। यह फसल मुख्यतः खरीफ सीजन में, वर्षा पर निर्भर करते हुए, सिंचित और असिंचित दोनों तरह की भूमि पर उगाई जाती है। बाजरा न केवल अनाज के रूप में महत्वपूर्ण है बल्कि यह चारे के रूप में भी उत्कृष्ट उपज प्रदान करता है।

पोषण की दृष्टि से, बाजरा में 15.6% प्रोटीन, 5% वसा, और 67% कार्बोहाइड्रेट होता है, जो इसे एक महत्वपूर्ण फसल बनाता है। विशेष रूप से राज्य के पश्चिमी भागों में 23 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है, हालांकि यहाँ इसकी उपज कम है। उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करके इसकी पैदावार में सुधार किया जा सकता है। भारतीय किसान प्राचीन काल से बाजरे की खेती कर रहे हैं, जो सीमित वर्षा और कम उर्वरक मात्रा में भी अच्छी उपज देती है।

यह फसल ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, खासकर गरीबों के लिए, बाजरे की रोटी, गेहूं की रोटी की तुलना में अधिक लाभदायक होती है, खासकर भारतीय महिलाओं के लिए, जो खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। इसके पौधे को हरे रूप में काटकर पशुओं के लिए चारा प्राप्त किया जा सकता है, जिससे दोहरा लाभ होता है। इस प्रकार, बाजरे की खेती न केवल आर्थिक लाभ बल्कि पोषण और पशुधन के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि आप भी बाजरे की खेती कर अधिक उत्पादन और लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक है।

बाजरे की उपयुक्त किस्में

सकूल किस्में

किस्मपकने की अवधि (दिनों में)अनाज की औसत उपज (किलोग्राम/हैक्टैयर)चारे की औसत उपज (किलोग्राम/हैक्टैयर)
राज 17182-871200-15004000-4200
सी जेड पी 980275-831400-18004000-4500
आई सी टी पी 820370-861500-20003500-4000
एम पी 38375-801500-21003600-4000

संकर किस्में

किस्मपकने की अवधि (दिनों में)अनाज की औसत उपज (किलोग्राम/हैक्टैयर)चारे की औसत उपज (किलोग्राम/हैक्टैयर)
एच एच बी 6765-701200-15002000-2500
जी एच बी 53870-751700-18003000-3500
आर एच बी 12175-801800-22003200-3500
आई सी एम एच-35675-801500-18003500-4000
जी एच बी 71970-751500-18003600-4000

बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

बाजरे की खेती को शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु वाली भूमि में की जा सकती है। वर्षा ऋतु की शुरुआत में ही बाजरे को खेत में बो देना चाहिए, और शरद ऋतु से पहले ही फसल काट लेनी चाहिए। बाजरे की उन्नत खेती के लिए 400 से 600 मिमी बारिश की आवश्यकता उपयुक्त रहती है। पौधों पर सिर आने के दौरान उन्हें नमी की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में अगर बारिश नहीं होती है, तो दाना कमजोर हो जाता है।

बाजरे के पौधों को अंकुरण के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि पौधों के विकास के लिए 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान आवश्यक होता है। लेकिन 40 डिग्री सेल्सियस पर भी बाजरे का पौधा अच्छी पैदावार दे सकता है।

बाजरे की बुआई का समय (Bajare Ki Kheti Kab Karen)

बाजरे के बीजों की बोने की प्रक्रिया को पहली बारिश के साथ ही खेतों में प्रारम्भ कर देना चाहिए। अगर बारिश सही समय पर नहीं होती, तो खेत में पानी दे कर बोया जा सकता है। बाजरे के बोने के लिए मई से जून का महीना सबसे उपयुक्त होता है। बाजरे के बोने के लिए दो तरीके होते हैं। पहले तरीके में, बीजों को खेत में छिड़ककर हल्की जुताई कर दी जाती है, ताकि वे मिट्टी में मिल जाएं। बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए।

बोने के दूसरे तरीके में, बीजों को मशीन द्वारा बोया जाता है। बीजों को कतारों में लगाया जाता है, और प्रत्येक कतार के बीच आधा फीट की दूरी रखी जाती है। बीजों को 8 से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर बोया जाता है। इस तरीके में बीजों को सिर्फ 2 सेंटीमीटर गहराई में ही बोया जाता है। बाजरे की बोने के लिए एक बीघा खेत में एक से सवा किलो बीज की आवश्यकता होती है।

भूमि एवं उसकी तैयारी

बाजरे की खेती दोमट, बलुई दोमट एवं बलुई भूमि में सफलता पूर्वक की जा सकती है। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिये। अधिक समय तक खेत में पानी भरा रहना फसल को नुकसान पहुंचा सकता हैं। वर्षा के पश्चात् प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिये। इसके पश्चात् हैरो द्वारा एक क्रौस जुताई करके पाटा लगा कर खेत को ढेले रहित एवं समतल कर देना चाहिये।

बीज दर एवं बुवाई की विधि

बाजरे की बुवाई का समय किस्मों के पकने की अवधि पर बहुत निर्भर करता है। बाजरे की दीर्घावधि (80-90 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में कर देनी चाहिये। मध्यम अवधि (70-80 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई 10 जुलाई तक कर देनी चाहिये तथा जल्दी पकने वाली किस्मों (65-70 दिन) की बुवाई 10 से 20 जुलाई तक की जा सकती है। बाजरे की फसल के लिए 4-5 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। अच्छी उपज के लिए खेत में पौधों की उचित संख्या होनी चाहिये। बाजरे की बुवाई पंक्तियों में 45 से 50 सेमी. की दूरी पर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. रखनी चाहिये।

खाद एवं उर्वरक

बाजरे की फसल के लिए अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती। इसमें, खेत के प्रति एकड़ में केवल 10 गाड़ी गोबर की खाद पर्याप्त होती है। साथ ही, बोने जाने से पहले, उचित मात्रा में एन.पी.के. को खेत में डाला जाता है। इसके बाद, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा को एक से डेढ़ महीने बाद छिड़काना चाहिए। कई स्थानों पर, डी.ए.पी. का भी उपयोग किया जाता है, और इसके बाद, तीन महीने बाद, प्रति एकड़ खेत में 20 से 25 किलोग्राम यूरिया को छिड़काना चाहिए। अगर बाजरे की खेती हरे चारे के लिए की जाती है, तो प्रत्येक कटाई के बाद पौधों को हल्के से उर्वरक देना चाहिए, ताकि पौधे अच्छे से वृद्धि कर सकें।

बाजरे की निराई-गुड़ाई

बाजरे की फसल को खास रूप से निराई और गुड़ाई की जरूरत नहीं होती है, हालांकि यदि इसे गुड़ाई दी जाए, तो पौधों की वृद्धि काफी अच्छी हो सकती है। इसका पैदावार पर भी प्रभाव पड़ेगा। अगर खेत में अधिक खरपतवार दिखाई देते हैं, तो खरपतवार नाशक दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए एट्राजिन का उपयोग करना उत्तम होता है।

फसल चक्र

बाजरे की फसल से अधिक पैदाकर प्राप्त करने के लिए उचित फसल चक्र आवश्यक है। असिंचित क्षेत्रों के लिए बाजरे के बाद अगले वर्ष दलहन फसल जैसे ग्वार, मूंग या मोठ लेनी चाहिये। सिंचित क्षेत्रों के लिए बाजरा – सरसों, बाजरा जीरा, बाजरा गेंहू फसल चक्र प्रयोग में लेने चाहिये।

जल प्रबंध

पौधों की उचित पैदावार के लिए नमी का सबसे महत्वूपर्ण स्थान है। वर्षा द्वारा प्राप्त जल के अधिक उपयोग के लिए खेत का पानी खेत में रखना आवश्यक है। इसके लिए खेत की चारों तरफ मैडबन्दी करनी चाहिये। इसके द्वारा खेत का पानी बाहर बहकर नहीं जायेगा तथा भूमि का जल कटाव से बचाव भी किया जा सकेगा। भूमि मैं उपलब्ध नमी का वाष्पीकरण द्वारा नुकसान को रोकने के लिए फसल की पंक्तियों के बीच बिछावन का प्रयोग लाभप्रद रहता है। विछावन के लिए खरपतवार या फसल के अवशेषों को प्रयोग में लिया जा सकता हैं। इसके अतिरिक्त फसल की बुवाई, मेड एवं कुंड विधि द्वारा वर्षा जल गहरे कुंडो में इक्ट्ठा जो जाता है तथा खेत में नमी अधिक दिनों तक संचित रहती है। जिसके द्वारा फसल की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। सिचिंत क्षेत्रों के लिए जब वर्षा द्वारा पर्याप्त नमी न प्राप्त हो तो समय समय पर सिचाई करनी चाहिये। बाजरे की फसल के लिए 3-4 सिंचाई पर्याप्त होती हैं ध्यान रहे दाना बनते समय खेत में नमी रहनी चाहिये। इससे दाने का विकास अच्छा होता हैं, एव दाने व चारे की उपज में बढ़ोतरी होती है।

पपड़ी प्रबंधन – फसल की बुवाई के बाद उगने से पहले वर्षा आ जाये तथा वर्षा के बाद तेज धूप निकल जाये तो भूमि की उपरी सतह सख्त हो जाती है, तथा सूखकर पपड़ी बनने के कारण बीज अंकुरित होकर बाहर नहीं आ पाता। पपड़ी बनने का मुख्य कारण भूमि की भौतिक संरचना है। पपड़ी की समस्या से बचने के लिए कंडों में 8-10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद प्रयोग करना लाभदायक रहता हैं।

बाजरे में लगने वाले प्रमुख रोग एवं कीट

दीमक – दीमक बाजरे के पौधे की जड़ें खाकर नुकसान पहुँचाती हैं। दीमक के नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर क्यूनालफोस या क्लोरपाइरिफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20 से 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त बीज को 4 मि.ली. क्लोरोपायरीफास प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिये। खड़ी फसल में यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो दीमक से नियत्रण हेतु सिंचाई के पानी के साथ 2 लीटर क्लोरोपाइरीफोस की मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिये ।

कातरा – बाजरे की फसल को कातरे की लट प्रारम्भिक अवस्था में काटकर नुकसान पहुंचाती है। कातरे के नियत्रण हेतू खेत के चारों तरफ घास को साफ करना चाहिये। कातरे के नियंत्रण हेतु क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये।

सफेद लट- इस कीट की लट तथा प्रौढ़ दोनों फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। लट की अवस्था में एक किलो बीज में 3 किलो कारबोफूरान 3 प्रतिशत या क्यूनालफास 5 प्रतिशत कण मिलाकर बुवाई करनी चाहिये। खड़ी फसल में चार लीटर क्लोरोपायरीफास प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देनी चाहिये।

रूट बग – रूट बग के प्रकोप की रोकथाम हेतु 25 किलो मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण को प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकना चाहिये। इसके अतिरिक्त क्यूनालफॉस की 1.25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।

जोगिया – इस रोग के कारण पौधे के सिट्टे पत्तियों के रूप की संरचना में बदल जाते है, तथा प्रभावित पौधे की पत्तिया पीली या सफेद रंग की हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों जैसे- एच.एच.बी. 67. आर. एच.बी. 121, राज 171, सी. जेड़. पी.-9802 की बुवाई करनी चाहिये, तथा बीज को एप्रोन एम्.डी. 35 की 6 ग्राम मात्रा प्रति किलो या एग्रोसन जी. एन. 2,50 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिये। रोग से प्रभावित पौधे उखाड देने चाहिये तथा खड़ी फसल में बुवाई के 25-30 दिन बाद मैन्कोजेब नामक फफूंदनाशक की 2 किग्रा, मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये।

अरगट या चेपा – यह बीमारी पौधों के सिट्टों पर शहद जैसे गुलाबी पदार्थ के रूप में दिखाई देती है। कुछ दिन बाद यह पदार्थ भूरा एवं चिपचिपा हो जाता है तथा बाद में काले पदार्थ के रूप में बदल जाता है। फसल पर सिटे बनते समय 2.5 किलो जिनेब या 2 किलो मेन्कोजेब के कम से कम 3 छिड़काव तीन चार दिनों के अन्तराल पर करने चाहिये। प्रमाणित एवं उपचारित बीज को बुवाई के लिए प्रयोग करना चाहिये।

स्मट – इस बीमारी के कारण पौधे के सिटों में दाने हरे रंग एवं बड़े आकर के हो जाते है। बाद में ये दाने काले रंग के हो जाते है तथा पूरे फफूंद के स्पोट से भरे होते है। इस बीमारी के नियंत्रण हेतु प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिये। उचित फसल चक्र अपनाना चाहिये। तथा फसल पर 1.50 किलो विटावैक्स को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये ।

पत्ती धब्बा – इस बीमारी के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर हल्के भूरे काले रंग के नाव के आकार के धब्बों के रूप में देखे जा सकते है। जीनेब नामक फफूंद नाशक 0.20 प्रतिशत घोल का छिड़काव करने पर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

उन्नत बीज पैदा करना – किसान अपने खेत पर संकुल किस्म के बाजरे का बीज स्वंय पैदा कर सकते हैं। बीज के लिए फसल उगाते समय अनेक सावधानियाँ, जैसे बीज के लिए बोई गई फसल के 200 मीटर तक बाजरे की दूसरी फसल नहीं होनी चाहिये। जिस खेत में फसल उगानी हो उसमें पिछले वर्ष बाजरा नहीं उगाया गया हो तथा बुवाई के लिए प्रमाणित बीज ही प्रयोग किया गया हो। इसके अतिरिक्त समय समय पर खेत से अन्य किस्मों के पौधों को निकालना, खरपतवार, कीड़े एवं बिमारियों का नियंत्रण आवश्यक है। खेत के चारों तरफ कम से कम 10 मीटर फसल छोड़कर बीज के लिए लाटे को अलग काटकर अच्छी प्रकार से सुखा लेना चाहिये। लाटे की मंडाई कर दानों की ग्रेडिंग कर लेनी चाहिये, तथा अच्छे आकार के बीज को धूप में सुखाकर 8-9 प्रतिशत तक नमी रहने पर कीटनाशक व फफूंदनाशक से उपचारित कर लोहे की टंकियों में भरकर अच्छी प्रकार से बन्द कर देना चाहिये। इस बीज को अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

कटाई एवं गहाई

बाजरे के सिट्टे जब हल्के भूरे रंग में बदलने लगे तथा पौधे सूखने लगे तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये। इस समय दाने सख्त होने लगते हैं, तथा नमी लगभग 20 प्रतिशत रहती है। कटाई के बाद सिट्टों को अलग कर लेना चाहिये तथा अच्छी प्रकार सूखाकर थ्रेसर द्वारा दानों को अलग कर लिया जाता है। थ्रेसर की सुविधा नहीं होने पर सिट्टों को पीटकर दानों को अलग कर अच्छी प्रकार सुखा लेना चाहिए।

उपज एवं आर्थिक लाभ

उन्नत विधियाँ द्वारा खेती करने पर बाजरे की वर्षा आधारित फसल से औसतन 12-15 क्विंटल दाने की एवं 30 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर सूखे चारे की उपज प्राप्त हो जाती है।

किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न

सामान्यतः बाजरा कितने दिन में तैयार होता है?

बाजरे की विभिन्न प्रजातियां लगभग 70-90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।

बाजरे की बुवाई कब की जाती हैं?

बाजरा खरीफ की फसल है। इसकी बुवाई वर्षा ऋतु में की जाती है। और जाड़े के आरंभ में काटी जाती हैं।

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