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रायड़ा (सरसों) की खेती कब और कैसे करें (Sarson Ki Kheti Kese Karen)

Rajendra Suthar, April 3, 2024April 3, 2024

रायड़ा (सरसों) का वैज्ञानिक नाम “Brassica juncea” है। यह एक प्रमुख खाद्य फसल है जिसके बीज से रायड़ा तेल निकाला जाता है। भारत में मूंगफली के बाद सरसों ही ऐसी तिलहनी फसल है जिसकी खेती सबसे ज्यादा की जाती है। कई किसान इसकी खेती करके अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। स

रसों की खेती की खास बात यह है कि इसमें गेहूं की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इससे सरसों की खेती उन इलाकों के किसानों के लिए काफी महत्व रखती है, जहां पानी की कमी है। यही कारण है कि हरियाणा और राजस्थान के किसान अधिकतर सरसों की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं। सरसों की उपयोगिता को देखते हुए इसकी बाजार मांग हमेशा बनी रहती है।

रायड़ा (सरसों) की उन्नत किस्में

रायड़ा (सरसों) के लिए बोई जाने वाली उन्नतशील प्रजातियाँ जैसे क्रांति, माया, वरुणा, इसे हम टी-59 भी कहते हैं, पूसा बोल्ड उर्वशी, तथा नरेन्द्र राई प्रजातियाँ की बुवाई सिंचित दशा में की जाती है तथा असिंचित दशा में बोई जाने वाली सरसों की प्रजातियाँ जैसे की वरुणा, वैभव तथा वरदान, इत्यादि प्रजातियाँ की बवाई करना चाहिए।

रायड़ा (सरसों) के लिए उपयुक्त जलवायु और मृदा

सरसों की फसल के लिए शुष्क एवं ठण्डी जलवायु की उपयुक्त होती है। जिन क्षेत्रों में कोहरा एवं ठण्ड अधिक पडती है। वहा पर सरसों की फसल को नुकसान होता है। ऐसे क्षेत्रों के लिए सरसों की बुवाई समय पर किया जाना आवश्यक है।

रायड़ा (सरसों ) की फसल के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए, सरसों की फसल के लिए दोमट भूमि सर्वोतम होती है, जिसमें की जल निकास उचित प्रबन्ध होना चाहिए।

रायड़ा (सरसों) बुवाई का समय

रायड़ा (सरसों) की फसल के लिए सितम्बर के अंतिम सप्ताह एवं 15 अक्टूबर (औसत तापमान 26 से 280 से. पर ) तक बुवाई कर लेना आवश्यक है। देर से बुवाई करने पर फसल देर से पकेगी और कीटो का प्रकोप अधिक होगा ।

रायड़ा (सरसों) के खेती कैसे करें (Sarson Ki Kheti Kese Karen)

रायड़ा (सरसों) की खेती के लिए भूमि की तैयारी – सरसों की खेती के लिए खेत की तैयारी सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, इसके पश्चात से तीन जुताईयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के पश्चात पाटा लगा कर खेत को समतल करना अति आवश्यक है।

सरसों की पैदावार दोमट, बलुई-दोमट, से चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है। बोनी के पूर्व खेत की 4-5 बार अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी की भुरभुरा बना ले भूमि की तैयारी के समय नमी संरक्षण का विशेष ध्यान रखे इसके लिए खेत की जुताई के साथ पाटा लगाना भी आवश्यक है। भूमि को सममतल करने के उपरान्त बीज को कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी. तथा पौधे से पौधेकी दूरी 10 सेमी. एवं बीज को 2.5 सेमी गहराई पर बुवाई करें।

बीज उपचार – सरसों की फसल के लिए उत्तम गुणवत्ता वाला 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को बोने से पहले बीज जनित रोगों से बचाव के लिए थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। जहां पाउडरी मिल्ड्यू या सफेद गेरूई रोग का संभावित हो, वहाँ मेटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर उपचारित कर बोने।

भूमि उपचार – फसल को भूमिगत कीटों से बचाव हेतु फोरेट 10 जी कि 20 किलो प्रति हे. या क्लोरोपायरीफास 20 कि.ग्रा या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलायें।

खाद एवं उर्वरक – सरसों की खेती के लिए 60 कुंटल गोबर की सड़ी हुई खाद की बुवाई से पूर्व, अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। सिंचित दशा में प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नइट्रोजन , 60 किलोग्राम फास्फोरस, और 60 किलोग्राम पोटाश तत्व का प्रयोग किया जाता है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस, और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले, अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के 25 से 30 दिन बाद टापड़ेसिग रूप में प्रयोग करना चाहिए।

सिंचाई – रायड़ा (सरसों) की फसल में पहली सिंचाई फूल आने के समय तथा दूसरी सिंचाई फलियाँ में दाने भरने की अवस्था में करना चाहिए, यदि जाड़े में वर्षा हो जाती है, तो दूसरी सिंचाई न भी करें तो उपज अच्छी प्राप्त हो जाती है।

खरपतवार नियंत्रण – सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन बाद घने पौधों को निकाल कर उनकी आपसी दूरी 15 सेन्टीमीटर कर देनी चाहिए। खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराईगुड़ाई सिंचाई के पहले और दूसरी सिंचाई के बाद करें। रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडामेथालिन 30 ई.सी. रसायन की 3.3 लीटर मात्रा की प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। बुवाई के 2-3 दिन के अंतर पर यह छिड़काव करना अत्यंत आवश्यक है।

रोग नियंत्रण – सरसों की फसल में प्रमुख रोग जैसे आल्टरनेरिया, पत्ती झुलसा रोग, सफ़ेद किट्ट रोग, चूणिल आसिता रोग तथा तुलासिता रोग फसल में लगते हैं। इन रोगों के नियंत्रण के लिए मेन्कोजेब 75 प्रतिशत नामक रसायन की 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

रायड़ा (सरसों) में लगने वाले रोग

झुलसा रोग – इस रोग में प्याज एवं पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इसके उपचार के लिए, फसल बोने के 50 दिन बाद रिडोमिल (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव करें।

तना सड़न – इस रोग से तोरी एवं सरसों के तनों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं एवं ग्रसित पौधे अंदर से पोले हो जाते हैं। किसान इस रोग को पोला रोग के नाम से जानते हैं। इस रोग के नियंत्रण हेतु बीज को बाविस्टीन 3 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार कर बोने।

रायड़ा (सरसों) में लगने वाले कीट

आरा मक्खी – यह अक्टूबर से दिसम्बर तक फसल को हानि पहुंचाती है। इसके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई.सी. 1 ली./हे. या मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 एम.एल. मात्रा/हे. 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

माहू – यह सरसों का प्रमुख हानिकारक कीट है जो पौधों की प्याज, फूल एवं फलियों से रस-चूसकर हानि पहुंचाता है। ओर जब आसमान में बादल छाये रहते हैं तब इसकी संख्या तेजी से बढ़कर मौसम साफ होने पर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई.सी. (1 ली./हे.) इमिडाक्लोरोपिड 17.8 एस.एल (125 मि.ली./हे.) दवा को 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कटाई एवं गहाई – सरसों की प्याजाएं एवं फलियां पीली पड़ जाएं तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। सूखने के उपरान्त सरसों के फसल की गहाई करनी चाहिए। जिससे बीज में नमी 10 प्रतिशत तक कम हो जाए और सरसों के बीज में कीटे एवं कीटाणु न लग सकें और वैज्ञानिक तरीके से बीज को भंडारित करें।

किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न


1 एकड़ में कितना सरसों बोना चाहिए?

एक एकड़ से लगभग 12 से 15 क्विंटल सरसों प्राप्त होती है जो चार से पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल बिकती है।

रायड़ा कब बोना चाहिए ?

रायड़ा (सरसों) की फसल बोने के लिए 10 से 20 अक्टूबर तक का समय अच्छा रहता है। इससे अधिक तापमान होने पर पौधे सूखने लगेंगे और फसल की पैदावार कम होगी । सरसों के बीज को कतारों में बोना चाहिए ।

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