गेंहू और सरसों में पीला रतुआ रोग का प्रकोप: जानिए गेंहू और सरसों की फसल के लिए सुरक्षा उपाय Rahul Saharan, December 27, 2024December 28, 2024 राम राम किसान साथियों जैसा कि आप सभी को मालूम है कि गेंहू और सरसों की फसल की बुवाई पूर्ण हो चुकी है। और कुछ स्थानों पर तो किसानों ने गेंहू और सरसों की फसलों की सिंचाई भी कर दी है। इस समय मौसम में बदलाव और सर्दी की पहली बरसात के बाद हवा में नमी की मात्रा में वृद्धि हुयी है। जिसके चलते अब गेंहू और सरसो की फसल में पीला रतुआ नमक रोग का प्रकोप फैलने की सम्भावना भी नजर आ रही है।किसान भाइयों गेंहू और सरसों दोनों ही रबी की फसल है। गेंहू एक विश्व व्यापी प्रकार की खाद्द्यान फसल है। गेंहू का वानस्पतिक नाम- ट्रिटिकम एस्टीवम होता है। चीन के बाद गेंहू उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। सरसों भी एक प्रकार की बहुत ही महत्व वाली व्यापरिक फसल है। जिसका वानस्पतिक नाम- ब्रेसिका कम्प्रेसटिस होता है। भारत में मूंगफली के बाद दूसरे नंबर पर सरसों आती है।क्या है पीला रतुआ रोग-किसान साथियों जैसा की आप सभी को मालूम है की गेंहू और सरसों एक रबी की फसल है। और सर्दियों में होने वाली बरसात इनके लिए किसी वरदान से कम नहीं होती है। लेकिन बरसात के बाद हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाने से गेंहू और सरसों की फसल में पीला रतुआ रोग होने की संभावना बाद जाती है। पीला रतुआ रोग गेंहू और सरसों की फसल में अधिक नमी और पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। पीला रतुआ रोग एक प्रकार का कवक जनित रोग है। जो की फफूंद से फैलता है।पीला रतुआ रोग फैलने का कारण-किसान साथियों हरियाणा यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर बीआर कम्बोज और अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग के अनुसार गेंहू और सरसों की फसल में पीला रतुआ रोग होने का सबसे बड़ा कारण है बरसात के कारण तापमान में गिरावट होना और हवा ने नमी की मात्रा का बढ़ना। जिसके चलते गेंहू और सरसों की फसल में पीला रतुआ रोग होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।किसान भाइयों बरसात होने के बाद हवा में नमी की मात्रा लगभग 90 प्रतिशत तक बाद जाती है। और तापमान लगभग 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर के 15 डिग्री सेल्सियस तक आ जाता है। जो की पीला रतुआ रोग को पनपने में बहुत ही अधिक अनुकूलता प्रदान करता है।पीला रतुआ रोग से अधिक प्रभावित होने वाली किस्में-किसान साथियों पीला रतुआ रोग से अधिक प्रभावित होने वाली किस्मे निम्नलिखित है –एचडी-2851 (HD-2851)एचडी-2967 (HD-2967)पीबीडब्ल्यू-343 (PBW-343)डब्ल्यूएच-711 (WH-711)पीला रतुआ रोग किन क्षेत्रों में अधिक होता है –किसान साथियों जैसा की आप सभी को मालूम है की गेंहू और सरसों की फसल में पीला रतुआ रोग अधिक नमी और कम तापमान वाले क्षेत्रों में होता है। और यह एक कवक (फफूंद) जनित रोग होता है। गेंहू वैज्ञानिक डॉ. ओपी बिश्नोई के अनुसार गेंहू ओरे सरसों की फसल में पीला रतुआ रोग पहाड़ी क्षेत्रों से बरसात के साथ भारत के उतर पश्चिमी मैदानी भागों (पंजाब, हरियाणा, उतरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश) में गेंहू की फसल को बहुत अधिक प्रभावित करता है।किसान साथियों पीला रतुआ रोग एक कवक जनित रोग है जो की कम तापमान और अधिक नमी के कारण होता है। और यह रोग लगभग दिसंबर के मध्य से लेकर के फरवरी माह के अंत तक जब तक की तापमान लगभग 22-25 डिग्री सेल्सियस तक ना पहुंच जाए तक तक यह एक्टिव रहता है।किसान साथियों सर्दियों में होने वाली बरसात गेंहूं और सरसों की फसल के लिए बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि इस बरसात से फसलों में फुटान बहुत अधिक अच्छा होगा और बरसात के द्धारा हवा में फैली हुयी जो नाइट्रोजन है वो बरसात के पानी में घुल कर के गेंहू और सरसों की फसल के पौधों पर गिरेगी जिससे की पत्तियों के पीले होने की जो समस्या है उससे निजात मिलेगी।पीला रतुआ रोग का नियंत्रण-किसान साथियों जैसा की आप सभी को मालूम है की गेंहू और सरसों में पीला रतुआ रोग कम तापमान और अधिक नमी के कारण होता है। और बरसात के बाद हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाने से गेंहू और सरसों की फसल में पीला रतुआ रोग होने की संभावना बाद जाती है। पीला रतुआ रोग गेंहू और सरसों की फसल में अधिक नमी और पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है।किसान भाइयों इस रोग का नियंत्रण करने के लिए आप हरियाणा कृषि यूनिवर्सिटी हिसार के वैज्ञानिको के द्धारा सुझाई गयी दवाओं का छिड़काव करके आप अपने खेत में इस रोग का नियंत्रण कर सकते है –पहली दवाई-किसान साथियों वैज्ञानिको के द्धारा पीला रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए सुझाई गयी पहली दवाई का नाम प्रोपिकोनाजोल(टिल्ट) है। इस दवाई को किसान भाई लगभग 200 मिली लीटर को लगभग 200 लीटर पानी में घोल बनाकर के प्रति एकड़ के हिसाब से इसका छिड़काव करें। और पहला छिड़काव करने के लगभग 15 से 20 दिनों के बाद इसी घोल का एक बार और छिड़काव अपने खेतों में कर देवें। इससे आपकी गेंहू की फसल से पीला रतुआ रोग का पूरी तरह से नियंत्रण कर सकते है।दूसरी दवाई- किसान साथियों वैज्ञानिको के द्धारा पीला रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए सुझाई गयी दूसरी दवाई का नाम-नेटिवो है। इस दवाई को किसान भाई लगभग 160 ग्राम को लगभग 200 लीटर पानी में घोल बनाकर के प्रति एकड़ के हिसाब से इसका छिड़काव करें। और पहला छिड़काव करने के लगभग 15 से 20 दिनों के बाद इसी घोल का एक बार और छिड़काव अपने खेतों में कर देवें। इससे आपकी गेंहू की फसल से पीला रतुआ रोग का पूरी तरह से नियंत्रण कर सकते है।सरसों में सफेद रतुआ रोग का नियंत्रण-किसान साथियों जैसा की आप सभी को मालूम है की सरसों में सफेद रतुआ रोग कम तापमान और अधिक नमी के कारण होता है। और बरसात के बाद हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाने से सरसों की फसल में सफेद रतुआ रोग होने की संभावना बाद जाती है।किसान भाइयों सफेद रतुआ रोग सरसों की फसल में अधिक नमी और पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। इस रोग में सरसों की फसल में पौधे की पत्तियों के नीचे सफेद रंग के फफोले और सफेद रंग का पाउडर बन जाता है। जो की जब फसक में फलियाँ बनने के समय ये गुच्छे का रूप ले लेते है। जिससे की सरसों की फसल की पैदावार पर बहुत अधिक बुरा असर पड़ता है।किसान भाइयों इस रोग का नियंत्रण करने के लिए आप हरियाणा कृषि यूनिवर्सिटी हिसार के वैज्ञानिको के द्धारा सुझाई गयी दवाओं का छिड़काव करके आप अपने खेत में इस रोग का नियंत्रण कर सकते है –किसान साथियों वैज्ञानिको के द्धारा सफेद रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए सुझाई गयी दवाई का नाम-मेनकॉजब है। इस दवाई को किसान भाई लगभग 800 ग्राम को लगभग 200 लीटर पानी में घोल बनाकर के प्रति एकड़ के हिसाब से इसका छिड़काव करें। इससे आपकी सरसों फसल से सफेद रतुआ रोग का पूरी तरह से नियंत्रण कर सकते है। कृषि सलाह