भीलवाड़ा के धाकड़ खेड़ी गांव की पहचान बनती जा रही जैविक खेती : जानिए जैविक खेती में सफल किसानों की कहानी Rajendra Suthar, September 26, 2024September 26, 2024 किसान साथियों आज हम बात करेगें मांडलगढ़ के धाकड़ खेड़ी गांव के 62 किसानों की प्रेरणादायक कहानी की। भीलवाड़ा जिले के मांडलगढ़ के धाकड़ खेड़ी गांव में 62 किसानों ने एक नई दिशा की ओर कदम बढ़ाते हुए जैविक खेती को प्राथमिकता दी है। जो न केवल उनकी सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है।कृषि विभाग के डॉ. शिवदयाल धाकड़ ने बताया की इस गाँव के किसानों ने हानिकारक रासायनिक खाद और बीजों का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है। यह बदलाव न केवल किसानो के कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार लाकर मजबूती प्रदान कर रहा है।जैविक खाद की तैयार करने की प्रक्रिया (Process of Preparation of Organic Fertilizer)जैविक खाद को तैयार करने में लगभग तीन महीनो का समय लगता है। इसके के लिए किसान सबसे पहले खेतों पर टीनशेड के नीचे पक्की खांचियाँ बनाते हैं। इसके बाद गोबर की रोड़ियों पर गोबर को बीस दिनों तक रखा जाता है। उसके बाद गोबर को खांचियों में भरा जाता है और पानी दिया जाता है ताकि नमी की मात्रा बरकरार रहे। यह प्रक्रिया केंचुओं को सुरक्षित रखने में मदद करती है।Also Read देशी गाय के गोबर से बने कचरा डीकंपोजर से मिट्टी की सेहत में सुधार: जानिए कैसे खांचियों की बराबर निगरानी राखी जाती है। लगभग दो महीने के बाद गोबर को बारीक करने के लिए विद्युत संचालित उपकरण का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद इसे छानकर कट्टों में भर लिया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर खेतों में उपयोग किया जाता है।रासायनिक खाद के दुष्परिणाम (Side Effects of Chemical Fertilizers)किसान भाइयों हरित क्रांति के दौरान रासायनिक खाद, बीज और दवाइयों का उपयोग कृषि में तेजी से बढ़ा जिससे उपज में अधिक वृद्धि हुई। लेकिन रासायनिक खाद के अधिक उपयोग के कारण इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे। भूमि की उर्वरता में कमी, जल स्रोतों का प्रदूषण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव ने किसानों का रासायनिक खाद से मोहभंग कर दिया। इस प्रकार की समस्याओं के कारण किसान साथी जैविक खेती की ओर रुख करने लगे है। जैसे-जैसे किसानों को जैविक खेती के फायदों का पता चला है तब से कई नए किसान इस दिशा में कदम बढ़ाने लगे।किसान नारायणलाल धाकड़ ने बताया की जब फसलों में किसी प्रकार का रोग या कीड़ा लगता है तो वे दवा का छिड़काव नहीं करते। इसकी बजाय वे जैविक तरीकों का उपयोग करते है। वे गौ मूत्र और नीम की निम्बोली को पीसकर उसके पानी के घोल का उपयोग करते हैं। यह प्राकृतिक समाधान न केवल फसलों को सुरक्षित रखता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। जैविक तरीकों के उपयोग के माध्यम से किसान प्राकृतिक संतुलन को बनाए रख सकते हैं और अपने फसलों की रक्षा कर सकते हैं।उपज की गुणवत्ता और भावकिसान कैलाशचंद्र सूतलिया ने बताया की जैविक खेती से उत्पादित गेहूं, मक्का, मूंगफली, उड़द, मूंग और ज्वार के अच्छे भाव मिलते है। गेहूं की 40 से 45 रुपये प्रति किलो दर से बिक्री होती है। हालांकि, पैदावार कम होती है, लेकिन अच्छे भाव मिलने से उनकी पूर्ति हो जाती है। इससे न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि वे अपने परिवारों के लिए बेहतर जीवन स्तर भी प्राप्त कर रहे हैं।Also Read नीम से बनाए जैविक कीटनाशक(Organic Pesticide): जानिए पूरी जानकारी जैविक खेती के फायदें (Benefits of Organic Farming)स्वास्थ्य के लिए लाभकारी: जैविक खेती से उत्पादित फसलें रसायनिक तत्वों से मुक्त होती हैं जो मानव के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।पर्यावरण संरक्षण: जैविक खेती में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता है जिससे जल, वायु और मिट्टी का प्रदूषण कम होता है।स्थायी कृषि: जैविक खेती लम्बे समय तक फसल उत्पादन को सुनिश्चित करती है, जिससे भूमि की उर्वरता कायम रहती है।सामाजिक जागरूकता: जब किसान जैविक खेती की ओर बढ़ते हैं, तो यह समुदाय में जागरूकता बढ़ाता है और अन्य किसानों को भी प्रेरित करता है।निष्कर्षधाकड़ खेड़ी गांव के किसानों द्वारा लिया गया जैविक खेती का संकल्प न केवल उनके लिए, बल्कि गांव के संम्पूर्ण क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक है। इस कहानी के माध्यम से ये सिद्ध होता है कि जब किसान साथी एक साथ मिलकर सही दिशा में प्रयास करते है तो न केवल जब किसान एकजुट होकर एक सही दिशा में प्रयास करते हैं, तो वे न केवल अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, बल्कि अपने समुदाय, समाज और पर्यावरण के लिए भी एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।इन 62 किसानों की सफल प्रेरणादायक कहानी हमें यह याद दिलाती है कि सच्ची मेहनत और दृढ़ संकल्प से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। जैविक खेती के माध्यम से वे न केवल अपनी भूमि की उर्वरता को बढ़ा रहे हैं, बल्कि अपने और अपने परिवार के भविष्य को भी सुरक्षित कर रहे हैं। यह एक नई शुरुआत है, जो न केवल मांडलगढ़ के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए एक मिसाल साबित हो सकती है। कृषि समाचार