मोठ की खेती कब और कैसे करें (Moth Ki Kheti Kese Karen) Rajendra Suthar, February 27, 2024February 27, 2024 मोठ का वैज्ञानिक नाम विग्ना एकोनिटिफोलिया (Vigna aconitifolia) है। मोठ को वन मूँग भी कहा जाता है। मोठ खरीफ दलहन फसलों में सबसें अधिक सूखा सहन करने वाली फसल है। जहां वर्षा कम, कम अन्तराल व अनियमित होती है वहां मोठ की खेती की जा सकती है। मोठ से बनी बीकानेरी भुजिया अपने स्वाद के लिये देश-विदेशो में प्रसिद्ध है जबकि इससे प्राप्त भूसा पौष्टिक चारे के रूप में उपयोग में लिया जाता है। मोठ की फसल सूखा सहन करने की अधिक क्षमता के कारण कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी फसल हैं इसके उत्पादन के लिए गर्म एवं शुष्क मौसम की आवष्यकता होती है। खरीफ में कम एवं अनिचित वर्षा वाले क्षेत्रों में जहां अन्य फसलें नही हो सकती वहां ये फसल उत्पादन देने में सक्षम है। फसल के लिए औसत तापमान 25-300 सेंटीग्रेड की आवश्यकता है।मोठ की उन्नत किस्मेंमोठ की किस्म पकने की अवधि(दिनों में)औसत उपज (क्विंटल /प्रति हैक्टेयर )विशेषताए आर एम ओ-4055-606-8पीत शिरा मोजेक के प्रतिरोधी l सूखा सहन करने की क्षमताIआर एम ओ-22560-656-8सूखा रोधी/पौधा 30-35 से.मी. ऊँचा Iकाजरी मोठ-2 70-758-9अधिक दाना एवं चारा 100 से 150 फलियां प्रति मोजेक के प्रति रोधीकाजरी मोठ-365-708-9दाने चमकदार एवं बड़े आकर वालेI पीत शिरा मोजेक के प्रतिरोधी Iआर एम ओ-25762-655-6पीत शिरा एवं थ्रिप्स के प्रति सहनशील Iमोठ की फसल के लिए उपयुक्त जलवायुमोठ की फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती है क्योंकि मोठ में सूखा सहन करने की शमता होती है इसकी वृद्धि एवं उत्पादन के लिए गर्म एवं शुष्क मौसम की आवष्यकता होती है। खरीफ में कम एवं अनिचित वर्षा वाले क्षेत्रों में जहां अन्य फसलें नहीं हो सकती ये फसल उत्पादन देने में सक्षम है। फसल के लिए औसत तापमान 25-300 सेन्टग्रेड की आवश्यकता होती है।मोठ की फसल के लिए उपयुक्त मृदामोठ की खेती कम उपजाऊ क्षेत्र में की जा सकती है। जहा आमतौर पर दूसरी दलहन तथा अन्य फसले उत्पादन नही दे सकती है वहां मोठ की फसल को आसानी से उगाया जा सकता है। मोठ की फसल के लिए रेतीली मिट्टी से हल्की दोमट मिट्टी जहां पानी भराव न हो उचित जल निकास हो उपयुक्त रहती है। मोठ की जड़ें अधिक गहराई तक जा कर भूमि से नमी प्राप्त कर लेती है, मोठ की खेती के लिए दो बार हेरों से जुताई कर पाटा लगा देना चाहिए तथा एक जुताई कल्टीवेटर से करना उचित रहता है।मोठ की बुआई का उचित समयआमतौर पर मोठ की बुआई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए लेकिन शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुवाई 30 जुलाई तक की जा सकती है। मोठ की बुवाई पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 45 सेंटीमीटर रखते हुए करनी चाहिए। मोठ की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्म का उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिये।मोठ की खेती कैसे करें (Moth Ki Kheti Kese Karen)मोठ की फसल की बुवाई रेतीली भूमि में की जा सकती है। मानसून आते ही आवष्यकतानुसार 1-2 जुताई कर पाटा लगाकर खेत तैयार कर लें। मोठ कम वर्षा एवं कम पानी वाली फसल है। अतः खेत तैयारी के समय मृदा में उपलब्ध जल के बचाव का पुरा ध्यान रखें ताकि फसल उपलब्ध जल का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कर सकें।मोठ की खेती के लिए भूमि उपचार- मोठ की खेती में दीमक का प्रकोप कम करने के लिए खेत की सफाई करें, फसल अवशेष हटाकर वहां पर रोकथाम के लियें क्यूनालफॉस 15 प्रतिषत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर के हिसाब से बुवाई से पूर्व जुताई के समय भूमि में मिलायें। मोठ में जड गलन रोग के नियंत्रण के लिये बुवाई में पूर्व 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 125 किलो सडी हुई गोबर की खाद में मिलाकर खेत की मिट्टी में मिलाना चाहिये।बीज की मात्रा – मोठ की सामन्य बुवाई के लिए 10 किलो बीज पर्याप्त रहता है। जबकि आर.एम.ओ. 40 किस्म की बुवाई करने के लिये 15 किलो बीज प्रति हैक्टेयर प्रयोग करें क्योंकि आर.एम.ओ. 40 किस्म का फैलाव कम होता है। तथा कम वर्षा में भी उत्पादन देने में सक्षम है।बीज उपचारः बीज को भूमिगत कीडों एवं बीज जनित रोगों से बचाने के लिये बुवाई से पूर्व बीज का उपचार अवश्य करें ताकि उगते बीज को नुकसान न हों व अंकुरण अच्छा हो। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बीज का अंकुरण सबसे महत्वपूर्ण होता है। बीज को 3 ग्राम केप्टान प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करने के बाद सूखा जड गलन रोग की रोकथाम के लिये ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रतिकिलो बीज उपचारित करें। इसके बाद फिर राइजोबियम कल्चर द्वारा उपचारित कर बुवाई करें। मोठ के बीजो को 100 पी.पी.एम. स्ट्रेप्टोसाइक्लिन घोल में एक घण्टे तक भिगोकर सूखा ले फिर केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें।राइजोबियम द्वारा उपचार – कल्चर द्वारा बीज उपचार करने के लिये 1 लीटर पानी में 250 ग्राम गुड मिलाकर गर्म कर घोल बनाये, गर्म घोल को ठण्डा करे तथा ठण्डे घोल में 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर (षाकाणु सर्वध) मिलायें। अब इस तैयार मिश्रण में एक हैक्टेयर क्षेत्र में बुवाई किये जाने वालें मोठ के बीजो को इस प्रकार मिलाये कि सभी बीजों पर एक समान कल्चर की परत चढ जाए फिर बीज को छाया में सूखायें तथा यथाशीघ्र बुवाई करें।फास्फोरस विलेयक जीवाणु खाद – इसमें मोठ की फसल को फास्फोरस की मात्रा भूमि में दी जाती है। इसका 20-25 प्रतिशत ही घुलनषील अवस्था में पौधों को उपलब्ध हो पाता है। बाकी बचा 75-80 प्रतिशत भाग भूमि में अघुलनशील अवस्था में पडा रहता है। जो पौधों के काम नहीं आ पाता फलस्वरूप उपज कम हो जाती है। अतः बीजो को फास्फोरस विलेयक जीवाणु से उपचारित करने से ये जीवाणु फास्फोरस को घुलनषील अवस्था में परिवर्तित कर पौधो को ग्रहण करने योग्य अवस्था में ले आते हैं। जिससे फास्फोरस की उपलब्धता बढ जाती है। और फसल आवश्यकतानुसार फास्फोरस का उपयोग कर अधिक उत्पादन देती है। फास्फोरस विलेयक जीवाणु से उपचारित करने के लिये 1 लीटर या आवष्यकतानुसार पानी में 125 ग्राम गुड मिलाकर गर्म कर घोल बनाये घोल ठण्डा करें तथा ठण्डे घोल में 500 ग्राम कल्चर मिलाये फिर बीज पर छिड़क कर अच्छी तरह मिलाये ताकि बीज पर एक समान परत चढ़ जाये। ध्यान रहे बीज का छिलका नहीं उतरें। उपचारित बीज को छाया में 10 मिनट तक सूखाये फिर शीघ्रता से बुवाई के लिए उपयोग करें।बीज को पहले कवकनाशी फिर कीटनाशी, फिर राइजोबियम फिर फास्फोरस विलेयक जीवाणु खाद से उपचारित करें। किसी भी स्थिति में क्रम नहीं बदलें। मोठ के बीज को 500 पी.पी.एम. (आधा ग्राम प्रति लीटर पानी) थायोयूरिया के घोल से 2-4 घण्टे उपचारित कर बुवाई करने से उत्पादन में वृद्धि होती है। यदि वर्षा देरी से होती है तो भी मोठ की बुवाई 30 जुलाई तक कर सकते हैं। फसल को हमेशा लाइनों में तथा अकेले बुवाई करना लाभदायक रहता है। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधो से पौधे की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखें। मोठ की आर.एम.ओ. 40 किस्म में दूरी कम रखते हैं। इसमें लाइन से लाइन 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखते हैं।उर्वरक एवं खाद की आवश्यकता – मोठ दलहनी फसल होने के कारण इसे नाइट्रोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। मोठ के लिए खेत की तैयारी के समय 2.5 टन गोबर या कंपोस्ट की मात्रा भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए। इसके उपरांत बुवाई के समय 44 किलो डीएपी एवं 5 किलोग्राम यूरिया भूमि में मिला देना चाहिए, बुवाई से पहले 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 1 लीटर पानी व 250 ग्राम गुड़ के घोल में मिलाकर बीज को उपचारित कर छाया में सूखाकर बोना चाहिए।मोठ की अधिक उपज प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए। वर्षा आधारित क्षेत्रों में मोठ -बाजरा फसल चक्र उचित रहता है।मोठ की फसल की कटाई एवं गहाई – जब मोठ की फलियां पक जाए और भूरी हो जाए तथा पौधा पीला पड़ जाए तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। लाटे को अच्छी प्रकार सूखने के पश्चात थ्रेसर का प्रयोग कर दाने को अलग कर लिया जाता है।उपजमोठ की उन्नत तकनीकों द्वारा खेती करने पर 6 से 8 क्विंटल दाने की उपज प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।मोठ की फसल का संरक्षणफली छेदक – मोठ की फसल में फली छेदक कीट की रोकथाम के लिये मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल या मैलाथियान 50 ईसी या क्यूनॉलफॉस 25 ई सी एक लीटर या कारबोरिल 50 प्रतिषत घुलनषील चूर्ण 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से फूल व फली आते ही फसल पर छिडकाव करें तथा आवश्यकता होने पर 15 दिन के अन्तर पर छिडकाव पूनः दोहराए।मोयला, हरा तेला व सफेद मक्खी – मोठ की फसल पर कीटो की रोकथाम के लिये मेलोथियॉन 50 ई.सी. या डायमिथोएट 30 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल एक लीटर या मेलाथियॉन 5 प्रतिषत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से फसल पर छिडकाव या भुरकाव करें।लीफ बीटल – लीफ बीटल के नियंत्रण के लिये मिथाइल पैरााथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण का फसल पर भुरकाव करें।मोठ की फसल में लगने वाले रोगचित्ती जीवाणु रोग – मोठ की फसल में इस रोग में छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे पत्तों पर तथा प्रकोप के बढ़ने की स्थिति में धब्बे फलियों व तनो पर भी दिखाई देते है। रोग अधिक होने पर पौधे मुरझा जाते हैं। इसलिये रोग के लक्षण दिखाई देते ही एग्रीमाईसीन 200 ग्राम या दो किलो ताम्रयुक्त कवकमार का प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करें। आवश्यकता हो तो छिडकाव पुनः दोहराए।पीतषिरा मोजेक रोग – मोठ में विषाणु द्वारा फैलने वाले रोग की रोकथाम के लक्षण दिखाई देने पर डायमिथोरट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से फसल पर छिडकाव करें। रोग की स्थिति को देखते हुए आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन के बाद पूनः छिडकाव करें।छाछया रोग – मोठ की पत्तियों को उपरी सतह पर शुरू में सफेद गोलाकार पाऊडर जैसे धब्बे बनते है। बाद में पाऊडर सारी पत्तियों एवं तने पर फैल जाता है। प्रभावित पत्तिया छोटी रहकर पीली पड़ जाती है। रोग की रोकथाम के लिये घुलनशील गन्धक 25 किलों अथवा डाइनोकेप एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से रोग के लक्षण दिखाई देते ही पहला छिडकाव तथा 10 दिन के अन्तर पर दूसरा छिडकाव करे। अगर पानी की व्यवस्था न हो तो 25 किलो गन्धक चूर्ण का प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।पीलीया रोग – मोठ की फसल में पीलापन दिखाई देते ही 0.1 प्रतिषत गंधक के तैजाब का छिडकाव करें, यदि आवश्यकता हो तो छिडकाव पूनः दोहराए।मोठ में सफेद मक्खी द्वारा किंकल विषाणु रोग फैलता है। रोग की रोकथाम के लिये लहसुन 5 प्रतिशत व नीम के बीज की गुली का 5 प्रतिशत मिश्रण या नीम बीज की गुली 4 प्रतिशत एवं 10 प्रतिशत गोमुत्र के मिश्रण का छिडकाव कर रोकथाम की जा सकती है।किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नमोठ की फसल कितने दिन में तैयार होती है?मोठ की फसल की लगभग 65-67 दिनों में सभी फलियाँ पक जाती है।मोठ के पौधे के लिए सबसे अच्छा स्प्रे कौन सा है?मोठ की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बाजार में उपलब्ध पेंडीमिथालीन (स्टॉम्प) की 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिए। कृषि सलाह