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मूंग की खेती कब और कैसे करें (Moong Ki Kheti Kese Karen)

Rajendra Suthar, February 24, 2024February 24, 2024

मूंग एक दलहनी फसल हैं जिसका वैज्ञानिक नाम बिगना रेडिएटा (Vigna radiata) है। मूंग की फसल खेत में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है जिससे अन्य फसलों की उत्पादकता बढ़ती है। मूंग की फसल के लिए ज्यादा बारिश नुकसानदायक होती है।मूंग की खेती वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। मूंग के पौधे सामान्यत: 30 से 90 सेमी लंबे होते हैं। यह वर्षा के दौरान पूरी तरह से पक जाते है और पौधे के ऊपर मूंग की फलियाँ विकसित होती हैं।

मूंग के दानो का उपयोग दाल के रूप में किया जाता है जिसमें 24-26% प्रोटीन, 55-60% कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3% वसा होती है। मूंग अच्छी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट्स का स्रोत होता है। इसमें विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन बी6, फोलेट, आयरन, मैग्नीशियम, और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। मूंग में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो वजन नियंत्रण में मदद करती है।

मूंग में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स हार्ट की सेहत को सुधारने में मदद कर सकते हैं। इसमें मौजूद फाइबर और पोटैशियम कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं, जो हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम कर सकते हैं।मूंग का सेवन इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, जिससे डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें मौजूद फाइबर और प्रोटीन भोजन के साथ शुगर के लेवल को संतुलित रखने में मदद कर सकते हैं। मूंग में पाए जाने वाले फाइबर पाचन को सुधारने में मदद करते हैं, जिससे खाना पचने में अधिक समय लगता है और उसकी रफ्तार को धीमा करता है।

मूंग की उन्नत किस्में (Moong ki Unnat Kisme)

सामान्यतया मूंग की खेती के लिए 8 किलो नाइट्रोजन 20 किलो सल्फर, 8 किलो पोटाश एवं 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बोने के समय प्रयोग करना चाहिये।

किस्म का नाम अवधि (दिन )उपज क्विं/हैक्टर
टॉम्बे जवाहर मूंग-3
(टी.जे. एम -3)
62-759-14
जवाहर मूंग -72171-8012-15
के – 85160-808-13
एच.यू.एम. 1 (हम -1)64-728-10
पी.डी.एम – 1165-7510-12
पूसा विशाल60-6512-15
आर एम जी-6264-706-10
आर एम जी-26860-708-10
आर एम जी-34462-727-10
एस एम एल-66862-718-9
गंगा-868-728-10
जी एम-462-6810-12

मूंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Moong Ki Kheti Ke lie Upayukt Jalavaayu)

मूंग की खेती के लिए नम एंव गर्म जलवायु होती है। वर्षा ऋतु मूंग की खेती के लिए उत्तम समय होता है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-32 °C तापमान अनुकूल पाया गया हैं। मूंग के लिए 75-90 से.मी.वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त पाये गये है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60% आर्द्रता होनी चाहिये। फसल पकने के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है।

मूंग की खेती के लिए उपयुक्त मृदा (Moong Ki kheti ke lie Upayukt Mrida)

मूंग की खेती के लिए दोमट, बलुअ दोमट भूमि जिसका पी. एच. 7 – 7.5 हो, उपयुक्त होती है। भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चहियेl पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो चलाकर करनी चाहिए तथा फिर एक क्रॉस जुताई हैरो से एवं एक जुताई कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिएl

मूंग की बुवाई का समय (Moong ki buvaee Ka Time)

मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिएl देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की बुवाई 30 जुलाई तक की जा सकती हैl स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाला तथा उपचारित बीज बुवाई के काम लेने चाहिएl बुवाई कतरों में करनी चाहिए l कतरों के बीच की दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है l

मूंग की खेती कैसे करें (Moong Ki Kheti Kese Karen)

मूंग की खेती के लिए खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 20 कि.ग्रा./हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 25-30 कि.ग्रा/हैक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1 + 2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। तत्पश्चात इस उपचारित बीज को विशेष राईजोबियम कल्चर की 5 ग्राम. मात्रा प्रति किलो बीज की दर से परिशोधित कर बुवाई करें।

मूंग की खेती से वर्षा के मौसम में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल के पीछे पंक्तियों अथवा कतारों में बुआई करना उपयुक्त रहता है। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिये 20-22.5 से.मी. रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. रखते हुये 4 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक – मूंग दलहनी फसल होने के कारण इसको नाइट्रोजन की कम कीआवश्यकता होती है। मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है l नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया के द्वारा बुवाई के समय देनी चाहिएl मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम से कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिएl इसके अतिरिक्त 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिएl खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टीकी जाँच कर लेनी चहियेl

सिंचाई तथा जल निकास– सामान्यतया मूंग की फसल की बुवाई वर्षा ऋतू में होती है वर्षा ऋतू के दौरान वर्षा की पर्याप्त मात्रा होने से सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है फिर भी इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच लम्बा अन्तराल होने पर अथवा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु के दौरान 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिये, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।

खरपतवार नियंत्रण – मूंग की फसल में खरपतवार का सही समय पर नियंत्रण कर फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है खरीफ मौसम में फसलों में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसेः सवा (इकाईनाक्लोक्लोवा कोलाकनम/ क्रुसगेली) दूब घास (साइनोडॉन डेक्टाइलोन) एवं चैडी पत्ती वाले पत्थरचटा (ट्रायन्थिमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना वेंघालेंसिस), महकुआ (एजीरेटम कोनिज्वाडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अर्जेसिया), हजारदाना (फाइलेन्थस निरूरी), एवं लहसुआ (डाइजेरा आरवेंसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटन्डस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत निकलते है। फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है। इसलिये प्रथम निराई -गुडाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिन पर करना चाहियें। चूंकि वर्षा के मौसम में लगातार वर्षा होने पर निराई-गुडाई हेतु समय नहीं मिल पाता साथ ही साथ श्रमिक अधिक लगने से फसल की लागत बढ जाती है। इन परिस्थितियों में खरपतवार नियंत्रण के लिये

रसायन का नाम मात्रा
(ग्रा. सक्रिय पदार्थ/हे.)
प्रयोग का समय नियंत्रित खरपतवार
पेन्डिमिथिलीन (स्टाम्प एक्स्ट्रा)700 ग्रा.बुवाई के 0-3 दिन तकघासफुस एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
इमेजेथापायर (परस्यूट)100 ग्रा.बुवाई के 20 दिन बादघासफूस, मोथाकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
क्यूजालोफाप ईथाइल (टरगासुपर)40-50 ग्रा.बुवाई के 15-20 दिन बादघासफूस के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण

फसल चक्र – मूंग की अच्छी पैदावार प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने हेतु उचित फसल चक्र आवश्यक है l वर्षा आधारित खेती के लिए मूंग -बाजरा तथा सिंचित क्षेत्रों में मूंग-गेहू/जीरा/सरसो फसल चक्र अपनाना चहिये l

बीज उत्पादन – मूंग के बीज उत्पादन हेतु ऐसे खेत चुनने चहिये जिनमें पिछले मौसम में मूंग नहीं उगाया गया हो l मूंग के लिए निकटवर्ती खेतो से संदुषण को रोकने के लिए फसल के चारो तरफ 10 मीटर की दुरी तक मूंग का दूसराखेत नहीं होना चहिये l भूमि की अच्छी तैयारी,उचित खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग ,खरपत वार, कीड़े एवं बीमारियों के नियंत्रण के साथ साथ समय समय पर अवांछनीय पौधों को निकालते रहना चहिय तथा फसल पकने पर लाटे को अलग सुखाकर दाना निकाल कर ग्रेडिंग कर लेना चहियेI बीज को साफ करके उपचारित कर सूखे स्थान में रख देना चाहिये I इस प्रकार पैदा किये गये बीज को अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है I

कटाई एवं गहाई – मूंग की फलियों जब काली पड़ने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए I अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता है I फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है I

मूंग की फसल में लगने वाले रोग एवं नियंत्रण

मूंग की फसल में अधिकतर पीत रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतया आते है। इन रोगों की रोकथाम हेतु रोग निरोधक किस्में हम 1, पंत मूंग 1, पंतमूंग 2, टी.जे.एम -3, जे.एम. 721 आदि का उपयोग करना चाहिये। पीत रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है इसके नियंत्रण हेतु मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी 750 से 1000 मि.ली. का 600लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टर छिड़काव 2 बार 15 दिन के अंतराल पर करे। फफूंद जनित पर्णदाग (अल्टरनेरिया/सरकोस्पोरा/माइरोथीसियस) रोगों के नियंत्रण हेतु डायइथेन एम. 45, 2.5 ग्रा/लीटर या कार्वान्डाजिम $ डायइथेन एम. 45 की मिश्रित दवा बना कर 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर वर्षा के दिनों को छोड़ कर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुरूप छिड़काव 12-15 दिनों बाद पुनः करें।

पीला चितकबरी (मोजेक) रोग – रोग प्रतिरोधी अथवा सहनशील किस्मो जैसे टी.जे.एम. -3, के -851, पन्त मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 का प्रयोग करें। बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाडकर नष्ट करें।

यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट है जिसे नियंत्रित करने के लिये ट्रायजोफॉ 40 ईसी, 2 मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथोक्साम 25 डब्लू. जी. 2 ग्राम/ली. या डायमेथोएट 30 ईसी, 1 मिली./ली. पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिडकाव करे।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग – मूंग की फसल में इस रोग की रोकथाम हेतु रोग रहित स्वस्थ बीजो का प्रयोग करना चाहिय। मूंग के पौधे घने नही होने चाहिये पौधो का 10 सेमी. की दूरी के हिसाब से विरलीकरण करे।

मूंग में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. की 2.5 ग्राम लीटर या कार्बेन्डाइजिम 50 डब्लू. पी. की 1 ग्राम/ली. दवा का घोल बनाकर 2-3 बार छिडकाव करे।

एन्थ्राक्नोज – प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का चयन करे। मूंग की फसल में इसकी रोकथाम हेतु फफूद नाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. 2.5 ग्राम/ली. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू. पी. की 1ग्राम/ली. का छिडकाव बुबाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात करे।

चारकोल विगलन – बीजापचार कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू जी. 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से करे और 2-3 वर्ष का फसल चक्र अपनाये तथा फसल चक्र में ज्वार, बाजरा फसलो को सम्मिलित करें।

भभूतिया (पावडरी मिल्डयू) रोग – मूंग की फसल की समय पर बुवाई करें और रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम/ली. पानी की दर से छिडकाव करे।

मूंग में लगने वाले प्रमुख कीट

दीमक – दीमक मूंग के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती हैl दीमक से बचाव के लिए पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए बोनेके समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोना चाहिए I

कातरा – मूंग की फसल में कातरा का प्रकोप विशेष रूप से होता है l इस किट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचती है l इसके नियंत्रण हेतु खेत के आस पास कचरा नहीं होना चाहिये l कातरे की लटों पर क्यूनालफोस 1 .5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिये I


पती बीटल – इस कीट के नियंत्रण के लिए क्यूंनफास 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए l

फली छेदक – मूंग की फसल में फली छेदक को नियंत्रित करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लीटर या मैलाथियोन या क्युनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो हेक्टयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये। आवश्यकता होने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव /भुरकाव किया जा सकता है।

रस चूसक कीड़े – मूंग की पतियों ,तनो एवं फलियों का रस चूसकर अनेक प्रकार के कीड़े फसल को हानि पहुंचाते हैंI इन कीड़ों की रोकथाम हेतु एमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मी.ली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिएI आवश्कता होने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें I

चीती जीवाणु रोग – इस रोग के लक्षण पत्तियों,तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देते है I इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसीन 200 ग्रामया स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए I

तना झुलसा रोग
इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।

पीलिया रोग – इस रोग के कारण मूंग की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतू गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चहिये I

किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न

मूंग बुवाई का सही समय क्या है?

खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये।

मूंग की खेती में कौन सा खाद देना चाहिए?

मूंग की खेती के लिए खेत में दो तीन वर्षों में कम से कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिये । इसके अतिरिक्त 600 ग्राम रोइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिये तथा बुवाई कर देनी चाहिये ।


मूंग की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?

पूसा वैसाखी मूंग की सबसे अच्छी किस्म हैं।


मूंग का बीज कितने दिन में उगता है?

समान्यतया मूंग का बीज  52 दिन में तैयार हो जाता है।

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