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जीरे की खेती कब और कैसे करें (Jeera Ki Kheti Kese Karen)

Rajendra Suthar, April 2, 2024November 13, 2024

जीरा एक बीजीय फसल है जिसका महत्वपूर्ण स्थान हर भारतीय रसोई में है। इसे छाछ, दही आदि में डालकर खाया जाता है, जिससे स्वाद में चटपटाहट आती है। साथ ही, इसके सेवन से स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। जीरे की खेती उचित तकनीकों का प्रयोग करके अच्छा उत्पादन और मुनाफा कमाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह फसल भारत के अनेक राज्यों में उगाई जाती है, जैसे कि गुजरात और राजस्थान, और उत्पादन को और बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।

जीरे की उन्नत किस्मे

आर जेड-19 – इस जीरे की किस्म को पकने में 120-125 दिन लगते हैं। प्रति हेक्टेयर इससे 9-11 क्विंटल तक उपज मिलती है। उखटा, छाछिया और झुलसा जैसे रोगों का प्रकोप इस पर कम होता है।

आर जेड-209 – यह वर्गीकरण भी 120-125 दिनों में तैयार होता है। इसमें दाने काफी मोटे होते हैं और प्रति हेक्टेयर 7-8 क्विंटल उपज मिलती है। छाछिया और झुलसा रोग इसमें कम देखने को मिलते हैं।

जी सी-4 – इस जीरे की किस्म को पकने में 105-110 दिन लगते हैं। इसके बीज बड़े होते हैं और इससे 7-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन संभव है। यह उखटा रोग के प्रति अधिक संवेदनशील है।

आर जेड-223 – इस किस्म को पकने में 110-115 दिन लगते हैं और इससे प्रति हेक्टेयर 6-8 क्विंटल तक की उपज मिलती है। यह उखटा रोग के प्रति रोधक क्षमता रखती है और इसके बीज में 3.25 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है।

जीरे की खेती के लिए भूमि एवं उसकी तैयारी

जीरे की फसल बलुई दोमट तथा दोमट भूमि अच्छी होती है। खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिये। जीरे की फसल के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद एक क्रास जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये तथा इसके पश्चात् एक जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी बना देनी चाहिये।

बीज एवं बुवाई

जीरे की बुवाई के समय तापमान 24 से 28° सेन्टीग्रेड होना चाहिये तथा वानस्पतिक वृद्धि के समय 20 से 25 सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है। जीरे की बुवाई 1 से 25 नवम्बर के मध्य कर देनी चाहिये। जीरे की बुवाई किसान अधिकतर छिड़काव विधि द्वारा करते है लेकिन कल्टीवेटर से 30 से.मी. के अन्तराल पर पंक्तियां बनाकर उसमें बुवाई करना अच्छा रहता है। एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 12 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त रहता हैं ध्यान रहे जीरे का बीज 1.5 से.मी. से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिये।

जीरे की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता

जीरे की फसल के लिए खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि जांच कराने के बाद देनी चाहिये। सामान्य परिस्थितियों में जीरे की फसल के लिए बुवाई से पहले 5 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद अन्तिम जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये। इसके बाद बुवाई के समय 65 किलो डीएपी व 9 किलो यूरिया मिलाकर खेत में देना चाहिये। प्रथम सिंचाई पर 33 किलो यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिये।

सिंचाई

जीरे की बुवाई के तुरन्त पश्चात् एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये। ध्यान रहे तेज बहाव के कारण बीज अस्त व्यस्त हो सकते है। दूसरी सिंचाई 6-7 दिन पश्चात करनी चाहिये। इस सिंचाई द्वारा फसल का अकुंरण अच्छा होता है तथा पपड़ी का अकुंरण पर कम असर पड़ता है। इसके बाद यदि आवश्यकता हो तो 6-7 दिन पश्चात् हल्की सिंचाई करनी चाहिये। अन्यथा 20 दिन के अन्तराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिये। ध्यान रहे दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई न करें। अन्यथा बीज हल्का बनता है। सिंचाई के लिए फव्वारा विधि का प्रयोग करना उत्तम है।

जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण

जीरे की फसल में खरपतवारों का अधिक प्रकोप होता है क्योंकि प्रारम्भिक अवस्था में जीरे की बढ़वार धीरे धीरे होती है इस अवधि में खरपतवारों की अधिक बढ़वार हो जाती है तथा फसल को नुकसान होता है। जीरे में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के समय के दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन (स्टोम्प) नामक खरपतवार नाशी की बाजार में उपलब्ध 3.3 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये। इसके उपरान्त जब फसल 25-30 दिन की हो जाये तो
एक गुड़ाई कर देनी चाहिये। यदि मजदूरों की समस्या हो तो ऑक्सीडाईजारिल (राफ्ट) नामक खरपतवार-नाशी की बाजार मे उपलब्ध 750 मि.ली, मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये।

जीरे की खेती में फसल चक्र

एक ही खेत में लगातार तीन वर्षों तक जीरे की फसल नहीं लेनी चाहिये। अन्यथा उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है। अतः उचित फसल चक्र अपनाना बहुत ही आवश्यक है। बाजरा-जीरा-मूंग-गेंहू-बाजरा-जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र का प्रयोग लिया जा सकता है।

जीरे की फसल में होने वाले रोग

जीरे की फसल पर होने वाले कुछ मुख्य रोग और उनके नियंत्रण के उपाय इस प्रकार हैं:

चंपा या एफिड – यह कीट विशेष रूप से फूल आने के समय पर हमला करता है। यह कीट पौधों के कोमल भागों को चूस कर हानि पहुंचाता है। इसके निवारण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 लीटर, मैलाथियान 50 ई.सी. 1 लीटर या एसीफेट 750 ग्राम को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव भी किया जा सकता है।

दीमक – दीमक जीरे के पौधों की जड़ों को काटकर फसल को गंभीर क्षति पहुंचाते हैं। दीमक से बचाव के लिए खेत की अंतिम जुताई पर क्लोरोपाइरीफॉस या क्यूनालफॉस 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में छिड़काव करें। खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफॉस 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की मात्रा में सिंचाई के साथ उपयोग करें। साथ ही, बीज को बोने से पहले क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मिली प्रति किलो दर से उपचारित करें।

उखटा रोग – इस रोग से पौधे मुरझा जाते हैं और यह अधिकतर शुरूआती दौर में होता है, लेकिन कभी भी फसल को हानि पहुंचा सकता है। इसे रोकने के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से उपचारित करके बोएं। साथ ही, प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें और खेत में गर्मियों में जुताई करें एवं एक ही खेत में बार-बार जीरे की खेती न करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.50 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 100 किलोग्राम कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव करें और हल्की सिंचाई करें।

झुलसा रोग – यह रोग फसल में फूल आने के बाद और मौसम बदलने पर लगता है। इसके लक्षणों में पौधों का ऊपरी भाग झुकना और पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे बनना शामिल है। इसके नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब 75% डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10-15 दिन के अंतर पर दोबारा छिड़काव कर सकते हैं।

इन उपायों का उपयोग करके जीरे की फसल को विभिन्न रोगों और कीटों से बचाया जा सकता है।

बीज उत्पादन

जीरे के बीज उत्पादन के लिए खेत का चयन करते समय ध्यान देना चाहिए। उस खेत को चुनना चाहिए जिस पर पिछले दो वर्षों से जीरे की खेती नहीं की गई हो। भूमि में अच्छा जल निकास होना चाहिए। जीरे के बीज उत्पादन के लिए चुने खेत के चारों ओर से 10 से 20 मीटर की दूरी तक दूसरी जीरे की फसल नहीं होनी चाहिए। सभी कृषि कार्यों जैसे खेत की तैयारी, बीज का उत्तम चयन, उन्नत बुवाई विधि, उर्वरकों का सही मात्रा में प्रयोग, बिमारियों और कीटों का सही नियंत्रण आवश्यक है। अवांछित पौधों को फूलने से पहले और फसल काटने से पहले हटा देना चाहिए। फसल को अच्छे से पकने पर, खेत के चारों ओर के लगभग 10 मीटर क्षेत्र को छोड़कर, लाटा काटकर अलग स्थान पर सुखाना चाहिए। दाने को अलग निकालकर उसे भी अच्छे से सुखाना चाहिए। दाने में 8-9 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए। बीजों को ग्रेडिंग करके उन्हें कीट और कवकनाशी रसायनों से उपचारित करके, साफ बोरों या लोहे की टंकी में भरकर सुरक्षित स्थान पर भंडारित करना चाहिए। इस प्रकार उत्पादित बीज को अगले वर्ष की बुवाई के लिए उपयोग किया जा सकता है।

जीरे की कटाई एवं गहाई

सामान्य रूप से जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाये तथा फसल पूरी पक जाये तो तुरन्त कटाई कर लेनी चाहिये। पौधों को अच्छी प्रकार सुखाकर थ्रेसर से मंडाई कर दाना अलग कर लेना चाहिये। दाने को अच्छी प्रकार सुखाकर साफ बोरों में भंडारित कर लिया जाना चाहिये।

किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न

जीरा कौनसे महीने में बोया जाता है ?

जीरे की बुवाई 1 से 25 नवम्बर के मध्य कर देनी चाहिये। 

एक बीघा में जीरा कितना क्विंटल होता है?

450 बीघा में करीब 650 किलो जीरे की बुआई की गयी. वह बताते हैं कि प्रति बीघा में करीब 8 क्विंटल जीरे का उत्पादन होगा


जीरा के लिए कौन सा जिला प्रसिद्ध है?

राजस्थान में जीरा उगाने के लिए जालौर जिला प्रसिद्ध है

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