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फूल गोभी की खेती : जानिए नर्सरी से पौध तैयार करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया

Rajendra Suthar, October 17, 2024October 17, 2024

फूल गोभी की खेती ने पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। जहां पहले गेहूं और बाजरे जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भरता थी, वहीं अब किसान फूल गोभी की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यह फसल यहां के कई गांवों में मुख्य फसल बन गई है, जैसे कि उदयपुरवाटी, नीमकाथाना, जहाज, राजीवपुरा, मणकसास, खेतड़ी और नवलगढ़।

फूल गोभी की खेती (Cauliflower Cultivation)की प्रक्रिया

कृषि पर्यवेक्षक पूरण प्रकाश यादव ने बताया कि फूल गोभी की खेती के लिए उचित पौधों की तैयारी काफी महत्वपूर्ण होती है। किसान पहले नर्सरी में पौधे तैयार करते हैं। इसके बाद, जब पौधे लगभग 30 से 35 दिन के हो जाते हैं, तब उन्हें खेत में रोपित किया जाता है। इस दौरान, मिट्टी की गुणवत्ता का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।

फूल गोभी के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी बलुई या दोमट होती है क्योंकि इस प्रकार की मिट्टी में जल निकास की क्षमता अच्छी होती है। बुवाई से पहले, खेत को तीन से चार बार जुताई करके समतल करना आवश्यक है। इसके बाद, सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट को खेत में मिलाना चाहिए, ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा हो।

खाद एवं उर्वरकों का उपयोग

फूल गोभी की उन्नत और अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का उपयोग भी आवश्यक है। किसान लाल चन्द सैनी बताते हैं कि प्रति बीघा फूल गोभी की खेती पर लगभग आठ हजार रुपए का खर्च आता है। इसके बदले में, किसानों को 20 से 30 क्विंटल गोभी मिलती है। हालांकि, मंडी में भावों के अनुसार मुनाफा बदलता रहता है।

पौधों का उपचार

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फूल गोभी के पौधों की रोपाई से पहले उनका उपचार करना भी महत्वपूर्ण है। किसान भागीरथ सैनी ने बताया कि उपचारित पौधे खेत में लगाने से उनकी वृद्धि और पैदावार दोनों में सुधार होता है। उपचार के लिए, एक ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन को एक लीटर पानी में घोलकर पौधों को 30 मिनट तक डुबाना चाहिए। इससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

सिंचाई

फूल गोभी के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी में नमी का होना अत्यंत आवश्यक है। अगेती किस्मों की बुवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितंबर तक की जा सकती है, जबकि मध्यम और पछेती किस्मों की बुवाई सितंबर के मध्य से अक्टूबर के पूरे महीने में की जाती है। रोपाई के दौरान कतारों के बीच 40 सेमी और पौधों के बीच 30 सेमी की दूरी बनाए रखना चाहिए। मध्यम एवं पछेती किस्मों में यह दूरी 45-60 सेमी होनी चाहिए।

सिंचाई का ध्यान रखते हुए, सितंबर के बाद हर 10-15 दिन में आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए। गर्मियों में, 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करना कि पौधों को पर्याप्त पानी मिले, उनकी अच्छी वृद्धि के लिए आवश्यक है।

फूल गोभी की खेती से किसान न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार कर रहे हैं, बल्कि यह फसल उन्हें बाजार में भी अच्छी कीमत दिलवा रही है। जब फूल गोभी तैयार हो जाती है, तो किसान इसे स्थानीय मंडियों में बेचते हैं। मंडी में फूल गोभी के भाव हर दिन बदलते हैं, जिससे किसानों को कभी ज्यादा तो कभी कम मुनाफा होता है।

हालांकि, फूल गोभी की खेती में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। मौसम की अनियमितता, कीटों और बीमारियों का खतरा, और बाजार में मूल्य की अस्थिरता कुछ मुख्य समस्याएँ हैं। इसके लिए, किसानों को कृषि विज्ञान केंद्रों से सलाह लेने, नवीनतम कृषि तकनीकों को अपनाने और रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

फूल गोभी की खेती अब पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प बन गई है। इसने न केवल उनके जीवन स्तर में सुधार किया है, बल्कि यह कृषि उत्पादन में भी विविधता लाई है। किसानों को चाहिए कि वे आधुनिक तकनीकों का उपयोग करें और अपनी फसल के लिए उचित प्रबंधन अपनाएं, ताकि वे इस फसल से अधिकतम लाभ उठा सकें। फूल गोभी की खेती से न केवल किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है, बल्कि यह क्षेत्र की कृषि विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

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