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भारतीयों की खाद्य पोषण समस्याओं का समाधान: जानिए बायोफोर्टिफाइड फसलों का योगदान और किसानो के लिए नए अवसर

Rajendra Suthar, September 5, 2024September 5, 2024

किसान साथियों वर्तमान में लगभग हर भारतीय व्यक्ति की पोषण की स्थिति गंभीर है। द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल की नई स्टडी के अनुसार, भारतीयों में आयरन, कैल्शियम और फोलेट की कमी देखी जा रही है। स्टडी रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों को ये महत्वपूर्ण पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं, जबकि संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए इनकी आवश्यकता होती है। यह स्थिति देश के लिए चिंता का विषय है और इसे हल करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है।

हालांकि, यह स्थिति किसानों के लिए एक नया और सुनहरा अवसर भी प्रस्तुत करती है क्योंकि भविष्य में बायोफोर्टिफाइड (Bio Fortified Crops) फसलें पोषण की कमी को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। बायोफोर्टिफाइड फसलें पोषण को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से तैयार की जाती हैं और ये आम भारतीयों के लिए एक बेहतर पोषण स्रोत हो सकती हैं। साथ ही, इन फसलों से किसानों के लिए अच्छी आमदनी का अवसर भी उत्पन्न हो सकता है।

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हावर्ड यूनिवर्सिटी रिपोर्ट (Harvard University Report)

हावर्ड यूनिवर्सिटी की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन को द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें 185 देशों के लोगों के आहार का विश्लेषण किया गया है। इस रिसर्च आधारित रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की बड़ी आबादी अनाज और सामान्य खाद्य पदार्थों से 15 प्रकार के आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त नहीं कर पा रही है। इस कमी के कारण इन पोषक तत्वों की शरीर में कमी हो रही है, और कई लोगों को अतिरिक्त पूरक आहार (सप्लीमेंट्स) लेने की जरूरत पड़ रही है।

इस स्टडी के अनुसार, दुनिया भर में 5 अरब से अधिक लोग आयोडीन, विटामिन ई और कैल्शियम का पर्याप्त सेवन नहीं कर रहे हैं। भारत में, महिलाओं की तुलना में पुरुष कम आयोडीन लेते हैं, और पुरुष, महिलाओं की तुलना में जिंक और मैग्नीशियम का कम सेवन करते हैं। यह स्थिति भारत में पोषण की कमी की गंभीरता को उजागर करती है और अतिरिक्त पोषण के लिए बायोफोर्टिफाइड फसलों की आवश्यकता को बल देती है।

बायोफोर्टिफाइड फसलें (Bio Fortified Crops)

फोर्टिफाइड चावल का स्वाद और शक के कारण विरोध होता रहा है, लेकिन सरकार और वैज्ञानिक बायोफोर्टिफाइड फसलों को एक जरूरी विकल्प मान रही हैं। फोर्टिफाइड फसलों में प्राकृतिक रूप से उगे चावल में विशेष प्रक्रियाओं के माध्यम से पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। वहीं, बायोफोर्टिफाइड फसलों के बीज वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए जाते हैं, जिनमें दूसरी फसलों से पोषक तत्व लेकर नए बीज विकसित किए जाते हैं, जिन्हें बायोफोर्टिफाइड फसलें कहा जाता है।

IARI के वरिष्‍ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह का कहना है कि हरित क्रांति के दौरान देश में अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए काम किया गया था। अब देश में अनाज की कोई कमी नहीं है, लेकिन पोषण की कमी बनी हुई है। ऐसे में अनाजों में पोषण बढ़ाने की जरूरत है और इसका सबसे सरल तरीका बायोफोर्टिफाइड फसलें हैं।

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किसानो को कैसे मिलेगा लाभ

अनाज को ग्रहण करने का मुख्य उद्देश्य शरीर के लिए आवश्यक पोषण तत्वों की प्राप्ति करना होता है। शरीर में पोषण की कमी को पूरा करने के लिए लोग अनाज का सेवन करते हैं। लेकिन, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी वाला अनाज राष्ट्रीय चिंता का कारण बन गया है। हालांकि, यह चिंता किसानों के लिए एक अवसर भी है। किसानों को अब सामान्य फसलों की जगह बायोफोर्टिफाइड फसलों की खेती करनी चाहिए।

डॉ. सिंह के अनुसार, बायोफोर्टिफाइड फसलों की खेती किसानों के लिए लाभकारी हो सकती है। क्योंकि ये फसलें सामान्य फसलों की तरह ही उगाई जा सकती हैं, लागत में कोई वृद्धि नहीं होती और उत्पादन भी समान रहता है। हालांकि, जब तक बायोफोर्टिफाइड फसलों का बाजार पूरी तरह से विकसित नहीं हो जाता, तब तक इन फसलों की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।

भारत में पर्याप्त अनाज भंडार होने के बावजूद, बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। इसका मुख्य कारण भारत में उगने वाले अनाज में पोषक तत्वों की कमी है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार बड़े पैमाने पर पोषण उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है। इस दिशा में 20 से अधिक फसलों की बायोफोर्टिफाइड किस्में तैयार की जा चुकी हैं और कई राज्यों में पीडीएस के तहत फोर्टिफाइड चावल वितरित किया जा रहा है।हालांकि, फोर्टिफाइड चावल को प्लास्टिक या चीन का चावल बताकर देश के विभिन्न हिस्सों में इसका विरोध भी हुआ है।

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