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(Kheere Ki Kheti)खीरे की खेती

खीरे की खेती कब और कैसे करें (Kheere Ki Kheti Kese Karen)

emandibhav.com, February 21, 2024February 21, 2024

खीरा जिसका वैज्ञानिक नाम कुकुमिस सेटाइवस (Cucumis sativus) है इसका उत्पत्ति स्थल भारत को माना गया है खीरे का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनो में किया जाता है तथा छोटे फलो का उपयोग अचार व बड़े फलो का उपयोग सलाद बनाने एवं सब्जी के रुप में किया जाता है। खीरा कब्ज से मुक्ति दिलाने के साथ ही पेट से जुड़ी हर समस्या में फायदेमंद साबित होता है। इसके अलावा एसिडिटी एवं सीने की जलन में नियमित रूप से खीरा खाना फायदेमंद होता है।

खीरे का नियमित सेवन करने से पेट में होने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है। जिनको परेशानी होती है वो दही में खीरे को कसकर उसमे पुदीना, काला नमक, काली मिर्च, जीरा और हींग डालकर रायता बनाकर खाएँ। इससे उन्हें काफी आराम मिलेगा। इसके बीजों के तेल का उपयोग मस्तिष्क व शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसके फलों में जल 96.3%, कार्बोहाइड्रेट 2.7%, प्रोटीन 0.4%, वसा 0.1% तथा खनिज पदार्थ 0.4% व विटामिन बी तथा सी की भी प्रचुर मात्रा पायी जाती है।

खीरा के फलों की तासीर ठंडी होती है इसलिए गर्मियों पर इसके फलो को नमक तथा मिर्च के साथ खाया जाता है। अतः गर्मियों में खीरे की भरपुर मांग रहती है व किसानों को इसके उत्पादन करने पर अच्छी आमदनी होती है।

खीरे की उन्नत किस्में

जापानी लौग ग्रीनबालम खीरा
पूना खीरास्ट्रेट एट
पाइनसेटपूसा उदय

खीरे की संकर किस्में

पूसा संयोगप्रिया
मालिनीनिजा

खीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

खीरा गर्म जलवायु की फसल है। बीज अंकुरण के लिए 30-35 डिग्री तथा पौधों की वृद्धि के लिये 32-38 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है खीरे की फसल पर अधिक वर्षा या बादल छाए रहने से रोगों व कीटों का अधिक प्रकोप होता है।

खीरे की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

खीरे की खेती के लिये अनेक प्रकार की मृदाओं जैसे भारी से हल्की भूमि में किया जा सकता है। खीरे की अच्छी पैदावार के लिये अच्छे जल निकास वाली दोमट एवं बलुई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.5-6.5 हो व जिसमें पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ हो वो उचित मानी जाती है। खेत 2-3 जुताई से तैयार हो जाता है। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर क्यारियां बना लेनी चाहिये। भारी भूमि की तैयारी के लिये अधिक जुताई की आवश्यकता पड़ती है।

खीरे की बुआई का समय (Kheere Ki Kheti Kab Karen)

खीरे को मैदानी क्षेत्रों में दो बार बोया जा सकता है। ग्रीष्म कालीन फसल की बुवाई फरवरी-मार्च एवं वर्षाकालीन फसल की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। वर्षाकालीन फसल के लिये बांस या लकड़ी के सहारे चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

खीरे की खेती कैसे करें (Kheere Ki Kheti Kese Karen)

0.75 मी. x 0.75 मी. x 0.75 मी. (गहरा, लम्बा चौड़ा) गड्ढ़ा तैयार कर उसमे गोबर की खाद, फास्फोरस तथा पोटाश व नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को मिलाकर भर देना चाहिए व 3-4 बीज प्रति गड्ढा में लगा देना चाहिए व अंकुरण के पश्चात् दो पौधा छोड़कर अन्य को उखाड़ दिया जाता है। दूसरी विधि में इसे उचित दूरी पर नालियां बनाकर उसके दोनों किनारे पर बीजों को लगाया जाता है इस विधि में नालियों की दूरी दुगुनी कर देना चाहिए। 3-4 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर से बुवाई करना चाहिये।

ग्रीष्मकालीन फसल के लिये 10-15 मी. पंक्ति से पंक्ति / नाली से नाली व 50-60 से.मी. पौधे से पौधे तथा वर्षाकालीन फसल के लिये 1.5 मी. पंक्ति से पंक्ति व 1.5 मी. पौधे से पौधे दूरी रखना चाहिये।

खाद व उर्वरक – 250 टन गोबर खाद या कम्पोस्ट / हेक्टेयर 60 किग्रा. नाइट्रोजन/ हेक्टेयर 40 किग्रा. फॉस्फोरस / हेक्टेयर 40 कि.ग्रा. पोटाश / हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है।

खाद व उर्वरक देने का समय – गोबर की खाद, फॉस्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नाइट्रोजन तीन भागों में 1/3 बुवाई के समय 1/3 भाग 4-5 पत्तिया आने पर व अंतिम 1/3 भाग फूल आने पर दिया जाना चाहिए।

सिंचाई तथा जल निकास – यदि वर्षा नियमित रुप से हो तो वर्षाकालीन मौसम के खीरा को सिंचाई की आवश्यकता नही होती हैं व शुष्क मौसम में फसल को 4-5 दिन के अंतराल मे सिंचाई की आवश्यकता होती है। खीरे में जल निकास आवश्यक है पानी खेत में इकट्ठा होने पर पौधे पीले पड़ जाते हैं और वृद्धि रुक जाती है।

खरपतवार नियंत्रण/निदाई-गुड़ाई – किसी भी फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिये खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। खीरे की अच्छी पैदावार लेने के लिये खेत को खरपतवारों से साफ रखना चाहिये। वसंतकालीन फसल में 2-3 एवं वर्षाकालीन फसल मे 4-5 बार निदाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है।

पादप वृद्धि नियामक – खीरा में प्रारंभ में नर फूलो की संख्या अधिक होती है। मादा फूल बाद में आते है व इनकी संख्या भी कम होती है, जिससे पैदावार घट जाती है इसलिए मादा फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए, 2-4 पत्तियों की अवस्था में एथ्रेल 250 पीपीएम का घोल का छिड़काव करना चाहिए जिससे लाभकारी परिणाम प्राप्त होते है।

खीरे में लगने वाले प्रमुख रोग

1. चूर्णिल आसिता – इस रोग से पत्तियों पर सफेद पाउडर सा बिखरा दिखाई देता है रोग तेजी से बढ़ता है व दूसरी पत्तियों में दानों तरफ की सतह को चूर्ण जैसे आवरण से ढक लेता है। इसकी रोकथाम के लिये कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/ली. पानी) सल्फेक्स (3 ग्राम/ली. पानी) की दर से छिड़काव करना चाहिये एवं आवश्यकतानुसार दो से तीन बार छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल पर करना चाहिये।

2. उकठा (म्यानि) – इस रोग का आक्रमण पौधे की किसी अवस्था में हो सकता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण पुरानी पत्तियों का मुरझाकर नीचे की ओर लटक जाता है। खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी रहते हुए भी पत्तियों के किनारे झुलस जाते है और पौधा धीरे-धीरे मर जाता है। इस रोग के रोकथाम के लिये बीजोपचार बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये व फसल चक्र एवं रोगरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिये।

3. मोजेक – यह विषाणुजनित रोग है पत्तियों की शिरायें व अंतः शिरायें पीली पड़ जाती है। पौधे की स्तंभ की अंतः कलिका छोटी हो जाती है। फल छोटे, सफेद व आकार में विकृत से हो जाते हैं। यह एक माहू कीट के द्वारा रोग का फैलाव होता है रोग ग्रसित बीज के द्वारा भी रोग संचरण होता है। इस रोग की रोकथाम विषाणुओं को शरण देने वाले खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिये एवं स्वस्थ बीज का चुनाव करना चाहिये। वाहक कीट के नियंत्राण के लिये मिथाइल ऑक्सीडेमेडान 25 ई.सी. या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 750 मिली प्रति हेकटेयर या इमिडाक्लोरप्रिड 200 एस.एल. का 0.5 मि.ली. पानी में घोलकर 10 से 15 किन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार करना चाहिये।

खीरे में लगने वाले प्रमुख कीट

1. कडू का लाल मृग (रेट पम्पकिन बीटल) – पौढ़ कीट लाल रंग का होता है पौढ कीट पत्तियों फूलों एवं फलों में छेद करके खाते हैं। शुरू की अवस्था में कीट प्रकोप होने पर पत्तियां पूर्ण रूप से चर ली जाती है और केवल डंठल शेष रह जाते है जिससे पौधों का विकास रूक जाता है तथा पौधे कमजोर पड़कर सूख जाते है। इस कीट की रोकथाम के लिये निंदाई-गुड़ाई कर खेत को साफ रखना चाहिये। फसल कटाई के बाद खेतों का गहरी जुताई करना चाहिये जिससे जमीन में छिपे हुये कीट तथा अण्डे उपर आकर सूर्य की गर्मी या चिड़ियों द्वारा नष्ट हो जाये। कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत दानेदार 7 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों के आधार के पास 3 से 4 से.मी. मिट्टी के अंदर उपयोग करे तथा दानेदार कीटनाशक डालने के बाद पानी लगाये। पौढ़ कीटों की संख्या अधिक होने पर डायक्लोरवास 76 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिये।

2. फल मक्खी – इस कीट का प्रौढ़ घरेलु मक्खी के बराबर लाल भूरे या पीले भूरे रंग का होता है। मादा कीट कोमल फलो में छेद करके छिलके के भीतर अंडे देती है। अंडो से इल्लियां निकलती है तथा फलो के गूदे को खाती है जिससे फल सड़ने लगते है। क्षतिग्रस्त फल टेढ़े-मेढ़े हो जाते है व कमजोर होकर नीचे गिर जाते है। इस कीट के नियंत्रण के लिये सबसे पहले क्षतिग्रस्त तथा नीचे गिरे फलों को नष्ट कर देना चाहिये। खेत में प्रपंची फसल के रूप में मक्का या सनई की फसल लगाना चाहिये। कार्बोरिल घुलनशीन पाउडर 50 प्रतिशत एक किलो प्रति हेक्टेयर या थायोडान 0.2 प्रतिशत के हिसाब से छिड़काव करें।

फलो की तुड़ाई – खीरे के फलों को कच्ची अवस्था में तोड़ लेना चाहिये जिससे बाजार में उनकी अच्छी कीमत मिल सके। जब फल हरे व पूर्ण रुप से विकसित हो जाते है तो उन्हे तोड़ लेना चाहिए एवं बाद की तुड़ाई 2-3 दिनों के अंतराल पर की जा सकती है। फलों की तुड़ाई तेजधार वाले औजार से करना चाहिये जिससे कि बेल को किसी तरह से नुकसान न पहुंचे।

किसान भाइयों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न


खीरा कितने दिन में फल देता है?

खीरे की खेती करने से 50-65 दिनों बाद खीरा फल देना शुरू कर देता हैं।

1 एकड़ में खीरे का कितना बीज लगता है?

1 एकड़ खेत में लगभग 1.5 किलो बीज लग जाता हैं।

खीरे की खेती का उपयुक्त समय कौनसा हैं?

खीरे की ग्रीष्म कालीन फसल की बुवाई फरवरी-मार्च एवं वर्षाकालीन फसल की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है।

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