कड़ाके की ठंड की भविष्यवाणी असफल: जानें आने वाले दिनों में कैसा रहेगा मौसम Rajendra Suthar, October 21, 2024October 21, 2024 इस साल अक्टूबर के पहले पखवाड़े में भारत के अधिकांश हिस्सों में औसत तापमान सितंबर के औसत तापमान से कुछ डिग्री अधिक दर्ज किया गया है। यह स्थिति मौसमी परिवर्तन के संदर्भ में कई प्रश्न खड़े कर रही है। मौसम वैज्ञानिकों और विभिन्न मौसम एजेंसियों की भविष्यवाणियाँ, जिनमें भारतीय मौसम विभाग (IMD) शामिल है, इस साल कड़ाके की सर्दी की उम्मीद कर रही थीं, अब तक सही साबित नहीं हुई हैं।इस वर्ष ला-नीना की परिस्थितियों के विकास की संभावना जताई गई थी, जिसके परिणामस्वरूप ठंड का एक कड़ा मौसम आने की उम्मीद थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। IMD का अभी भी मानना है कि इस वर्ष की सर्दी में सामान्य से कम तापमान रहने की संभावना है। अप्रैल में मौसम एजेंसियों ने 85% संभावना जताई थी कि ला-नीना विकसित होगा, लेकिन मानसून की समाप्ति के बाद वह विकसित नहीं हो सका।वही दुसरी ओर ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की मौसम एजेंसियों ने भी ला-नीना की संभावनाओं को कम किया है। ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो ने कहा है कि आने वाले महीनों में ला-नीना विकसित होने की संभावना कम हो रही है। अमेरिका की एनओएए ने भी संकेत दिया है कि नवंबर के अंत में यह स्थिति 60% तक हो सकती है। यह सभी एजेंसियाँ अब अपनी पूर्वानुमान में गलती की जड़ खोजने में जुटी हैं।यह स्पष्ट है कि इस बार मौसम की भविष्यवाणियों में जो असफलता देखी गई है, उसके पीछे कई कारक शामिल हो सकते हैं। ला-नीना और अल-नीनो जैसे पूर्वानुमान लार्ज-स्केल ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल के आधार पर किए जाते हैं, लेकिन इनकी सटीकता में कमी हो सकती है।पश्चिमी विक्षोभों की भूमिकाAlso Read सरकार ने रबी सीजन की फसलों के लिए समर्थन मूल्य किया घोषित : जानिए सम्पूर्ण जानकारी भारत में सर्दी का तापमान बदलने का एक बड़ा कारण पश्चिमी विक्षोभों की संख्या और तीव्रता है। ये विक्षोभ भूमध्य सागर से पैदा होते हैं और अक्टूबर से फरवरी तक हिमालय की तरफ बढ़ते हैं। महेश पलावत, स्काईमेट के एक मौसम वैज्ञानिक, बताते हैं कि जब पश्चिमी विक्षोभ अधिक होते हैं, तो सर्दी का मौसम भी अधिक कड़ाकेदार होने की पूर्ण संभावना होती है।पश्चिमी विक्षोभों का असर न केवल ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी का कारण बनता है, बल्कि मैदानी इलाकों में बारिश भी लाता है। इसका अनुमान एक से दो हफ्ते पहले लगाया जा सकता है, जो कि मौसम की भविष्यवाणी में एक प्रमुख तत्व है।संभावित प्रभाव : इस वर्ष जब कड़ाके की सर्दी नहीं आई, तो इससे किसानों और सामान्य जनता पर विभिन्न प्रभाव पड़ सकते हैं। कृषि उत्पादों की पैदावार और फसलों की बढ़ोतरी पर इसका सीधा असर पड़ता है। यदि तापमान सामान्य से अधिक रहता है, तो इससे सर्दियों की सीजन की फसलें भी प्रभावित हो सकती हैं।मौसम की अस्थिरता और भविष्यवाणियों में गलतियाँ हमें यह याद दिलाती हैं कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव किस तरह से हमारी जीवनशैली को प्रभावित कर सकता है। इसके लिए हमें अधिक शोध, तकनीकी उन्नति, और सटीक डेटा की आवश्यकता है ताकि हम बेहतर पूर्वानुमान कर सकें।निष्कर्षकड़ाके की ठंड की भविष्यवाणियाँ जो इस साल नहीं आईं, यह एक संकेत है कि मौसम विज्ञान में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। इसके बावजूद, हमें उम्मीद है कि मौसम एजेंसियाँ अपनी गलतियों से सीखेंगी और भविष्य में अधिक सटीक पूर्वानुमान कर सकेंगी। हमें अपनी कृषि नीतियों और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।इस बदलाव के साथ, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने स्थानीय मौसम पैटर्न को समझें और उनकी तैयारी करें। सर्दी के मौसम में अगर तापमान सामान्य से कम रहता है तो भी हमें इसके प्रभावों को ध्यान में रखना चाहिए।इसलिए, मौसम की अस्थिरता और भविष्यवाणियों में आई असफलता हमें सतर्क करने के लिए एक सबक है, ताकि हम आने वाले समय में बेहतर निर्णय ले सकें। मौसम समाचार